रायपुर। पत्थर अगर पानी में तैरे तो सरप्राइज होना लाजिमी है।
मगर यह सचमुच तैरे तो आपकी जिज्ञासा जरूर ही जानने की होगी कि यह कैसे? तो
पढ़िए इसका जवाब।
पत्थर पानी में डालिए नेचुरली डूब ही जाएगा। मगर क्या आपने कभी ऐसा
पत्थर भी देखा है, जो डूबता ही नहीं। विज्ञान इन्हें ज्वालामुखी के बाद राख
और गर्म गैसों से बने पत्थर मानता है तो लोग इसे रामसेतु में प्रयुक्त
चट्टानें मानते हैं। इसी तरह के पत्थर शहर के दो मंदिरों में हैं।
एक तो जैतू साव मठ में है, जिसे एक्वेरियम के जार में पानी भरकर रखा
गया है। वहीं दूसरा दूधाधारी मठ में है। यूं तो पत्थर यहां पर सालों से
हैं, लेकिन लोगों का ध्यान कम ही जाता है।
बहरहाल हम आपको बता दें कि यह पत्थर भगवान राम ने लंका के लिए पुल
बनाने में प्रयोग किए थे। पौराणिक तथ्यों के मुताबिक रामजी के साथ नल नील
को यह वरदान था कि वे जिस पत्थर को छूएंगे वह पानी में तैरेगा।
तथ्य: रामेश्वरम से आए यह पत्थर
दूधाधारी मठ का पत्थर 15 साल पहले तो जैतू साव का पत्थर 7 साल पहले
यहां लाया गया था। इन मठों के मठाधीश महंत रामसुंदर दास कहते हैं, कि
रामेश्वरम यात्रा में मुझे सेतु निर्माण में इस्तेमाल पत्थर देखने को मिले।
मेरी रुचि जागी, और मैं संबंधित लोगों से बातकर पत्थर रायपुर ले आया। एक
पत्थर शिवरी नारायण के मंदिर में भी है।
आस्था: छेडख़ानी से डूब भी जाते हैं
यह नेचुरल है कि इन पत्थरों की यहां पूजा की जाती है। खैर हम आपको एक
और रुचिकर बात बताते हैं, जनाब ये पत्थर कई बार डूब भी जाते हैं। पुजारियों
के अनुसार जब लोग इन्हें बार-बार छूते, छेड़ते हैं तो ये डूब जाते हैं।
फिर इन्हें दो दिनों तक बिना पानी के रखा जाता है। दूधाधारी मठ में रखे दो
पत्थरों में से एक ऐसा ही जिसे जितना छेड़ो वह नहीं डूबता।
..और विज्ञान: इन्हें कहते हैं वोल्केनो रॉक्स
रविवि के जियोलॉजी विभाग के प्रो. निनाद बोधनकर कहते हैं, ये वोल्केनो
रॉक्स हैं, जो ज्वालामुखी के बाद पैदा होती हैं। इन्हें प्यूमिक स्टोन कहा
जाता है। ज्वालामुखी से निकली महीन राख, धूल के कण वोल्केनो रॉक में बदल
जाते हैं। इनके भीतर गैसें भी रहती हैं, जो इन्हें तैरने में मदद करती हैं।
ऐसे पत्थर रामेश्वरम के अलावा महाराष्ट्र में भी पाए जाते हैं।
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