सुप्रीम कोर्ट ने ये निर्देश एक स्वंयसेवी
संस्था, बचपन बचाओ आंदोलन, की एक याचिका की सुनवाई करते हुए दिए. अदालत ने
गुजरात, तमिल नाडु, उड़ीसा, हिमाचल प्रदेश, गोवा और अरुणाचल प्रदेश के
मुख्य सचिवों को भी मामले में तलब किया है और कहा है कि पांच फरवरी को उसके
सामने पेश हों.
राज्य सरकारों के आंकड़ो का हवाला देते हुए
स्वंयसेवी संस्था ने कहा कि मुल्क भर में साल भर के दौरान कम से कम एक लाख
गुम हो जाते हैं. संस्था के अनुसार जहां लाख बच्चे साल भर में गायब होते
हैं वहीं मात्र 10,000 मामलों की शिकायत ही पुलिस के पास दर्ज होती है.
बीबीए के वक़ील एच एस फुल्का ने बीबीसी को
बताया कि, “एफआईआर दर्ज होने से फायदा ये होगा कि अखबार में बच्चे की फोटो
छपेगी, जिससे उनके मिलने या उनकी पहचान होने की संभावना बढ़ जाएगी.” उनके
अनुसार, ज़्यादातर बच्चों के गुम होने पर मां-बाप जब पुलिस थाने जाते हैं
तो उनकी शिकायत दर्ज करने के बजाए उन्हें कहा जाता है कि बच्चा आसपास ही
होगा और ढूंढने की कोशिश करें तो मिल जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट ने सभी पुलिस थानों में बाल
कल्याण अधिकारी की अध्यक्षता में बच्चों के लिए विशेष पुलिस यूनिट बनाने के
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सुझाव भी मान लिए हैं.
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