दोस्तों दिल्ली की बस में एक दिल हिला देने वाली दर्दनाक और खोफ्नाक घटना
ने दिल्ली को ही नहीं पुरे देश को हिला कर रख दिया है ..लडकियों की इज्ज़त
अस्मत सुरक्षित नहीं है चारो तरफ यही आवाज़ है बलात्कारियों को फांसी की सजा
मिले लोगों की यही मांग है पहले भी यह मांगे उठ चुकी है खुद अडवानी जी के
उपप्रधानमन्त्री कार्यकाल में उन्होंने भी इस मांग को उठाई थी इस घटना पर
जनता ने उत्तेजना दिखाई ..नेताओं ने राजनीति की जेल के बंदियों ने अपराध
किया लेकिन घटना जहां थी वहीं है अपराध जहाँ था वहीँ है कुछ दिन चीखेंगे
चिल्लायेंगे और फिर नई घटना को लेकर नया आन्दोलन नई चीख पुकार जरा सोचो
लोकपाल बिल का हंगामा कहा गया ..कहा सो गए लोकपाल बिल के हमदर्द ..पहले भी
ऐसे आन्दोलन हुए है लेकिन नतीजा बेकार आन्दोलन के नाम राजनीति एक मजाक बन
गया है मिडिया भी घटना को मजाक बनाता है सियासत करता है बिजनेस करता है
लेकिन मार्गदर्शन कोई नहीं करता ..जेसा के आप जानते है बलात्कार के मामले
में सजा है और भारत में कानून का राज है यहाँ जिस दिन बलात्कार हुआ या
बलात्कार के साथ हत्या का प्रयास क्या गया उस दिन कानून कितनी सज़ा थी
अपराधी को इससे ज्यादा सजा हिंदुस्तान की कोई संसद कोई अदालत किसी भी सूरत
में नहीं दे सकती फिर इस घटना के अपराधियों को फंसी की सजा की मांग करना एक
बेमानी बात है ताज्जुब तो जब होता है जब इस मांग में संसद और विधानसभा में
कानून बनाने वाले ..सियासी पार्टियां चलाने वाले और अखबार ..इलेक्ट्रोनिक
मिडिया से लेकर वकील वगेरा भी शामिल हो जाते है आखिर हम देश की जनता को कब
तक गुमराह करते रहेंगे .......अब हम मुद्दे की बात पर आते है हमारे देश में
जो मांग होना चाहिए वोह नहीं हो रही है ..हमारे देश में पुलिस है ..पुलिस
बीट प्रणाली में महिलाओं की सुरक्षा की विशेष व्यवस्था और निर्देश है
महिला सुरक्षा समितियां महिला पुलिस है लेकिन सब बेकार कामकाजी महिलाओं के
लियें सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश पर समितियां बना कर बैठक करना हुकम है
लेकिन सब बेकार सुप्रीम कोर्ट ने कहा है के बलात्कार के मामले में तुरंत
मुकदमा दर्ज हो लेकिन सभी जानते है के पच्चीस फीसदी बलात्कार के मामले आज
भी थानों में दर्ज नहीं किये जाते और मजबूरी में यह मामले अदालत के जरिये
इस्त्गासों से दर्ज होते है ..हमारे देश में कानून है के महिला को थाने
में रात को पुरुष पुलिस कर्मियों के साथ नहीं रखेंगे लेकिन रखा जाता है
बिना महिला पुलिस के महिला को गिरफ्तार किया जाता है तलाशी ली जाती है
टांगा टोली की जाती है ......घरेलू हिंसा में पुलिस और संरक्षण अधिकारी मदद
नहीं करते ....महिला का मेडिकल पुरुष चिकित्सक करते है तो जनाब कानून तो
केवल किताबों में ही है सुप्रीम कोर्ट ने देश की अदालतों में बलात्कार के
मामलों की सुनवाई महिला जजों द्वारा किये जाने सरकारी वकील महिला रखे जाने
के आवश्यक निर्देश दिए संसद ने कानून बनाया लेकिन सब बेकार कुछ एक अपवादों
को अगर छोड़ दे तो सभी जगह बलात्कार के मामलों की सुनवाई कानून और
सुप्रीमकोर्ट के आदेशों के खिलाफ पुरुष जजों द्वारा की जा रही है और पेरवी
पुरुष सरकारी वकीलों द्वारा करवाई जा रही है मामले जो सेशन ट्राइल के होने
से दिन प्रतिदिन के हिसाब से सुनवाई के होना चाहिए लेकिन एक तारीख तीन माह
की जाती है और कई सालों तक मामले लम्बित रहते है अगर इन सवालों का जवाब
जनता ..जनप्रतिनिधि ..सियासी पार्टियाँ सरकारें और संसद विधानसभा में बेठे
लोग वक्त पर ढूंढ़ लेते तो आज जो बवाल मचा है वोह नहीं मचता लेकिन अफ़सोस आज
भी इसी बात पर है के आन्दोलनकारी ..विपक्ष ..सांसद ..विधायक और सरकारे
मिडिया जो कोई भी हो इस सच्चाई को नहीं स्वीकार रहा है और हालत जस के तस है
अगर इन हालातों को नहीं सुधार और जो किताबों में लिखा है उसकी पालना नहीं
की तो फ्री सरकार को जनता को बेवकूफ बनाना और विपक्ष को जनता के साथ ठगी
करना और आन्दोलन कारियों को जनता के जज्बातों के साथ खेलना बंद कर देना
चाहिए ...........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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