रांची। स्नान करने के बाद सखियों को तेज भूख लगी। इंतजार करने को
कहा तो मानी नहीं, अपनी जिद पर अड़ी रहीं। बस फिर क्या, भवानी ने आव देखा न
ताव, खड्ग उठाया और काट डाला अपना ही सिर। गले से निकली खून की तानी
धाराएं। दो धाराएं दोनों सखियों के मुंह में और अपने कटे सर के मुंह में
जाने लगीं। दोनों सखियां खून पीकर तृप्त और भवानी भी संतोष कि सहेलियों की
भूख तो मिट गई। सुनने में यह कहानी काल्पनिक भले ही लगती हो पर सारी दुनिया
की मां जब ऐसा करे तो विश्वास हो ही जाता है। मां भवानी के इसी सर कटे रूप
की पूजा आज भी जारी है, छिन्नमस्तिका के रूप में। दस महाविधाओं में से एक
मां छिन्नमस्तिका का विख्यात सिद्धपीठ झारखन्ड की राजधानी रांची से 75 किमी
दूर रजरुप्पा नामक स्थान में स्थित है। यही है वह जगह जिसे असम के मां
लकामाख्या मंदिर के बाद दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ माना जाता है।
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