भोपाल। गैस त्रासदी। 28 बरस। लंबा वक्त गुजरा लेकिन आज भी वही
मुद्दे, वही सवाल। यूं तो गैस पीडि़तों का दर्द हर रोज किसी न किसी रूप में
सामने आता रहता है- कभी न्याय के लिए संघर्ष तो कभी उचित मुआवजे की लड़ाई।
गैस त्रासदी की बरसी पर हर साल ३ दिसंबर को भोपाल के जख्म जैसे हरे हो
जाते हैं। धरना-प्रदर्शन, श्रद्धांजलि और आश्वासन....लेकिन शहर और गैस
पीडि़तों की जिंदगी से जुड़े कुछ सवाल बरकरार ही रहते हैं- पीडि़तो को कैसे
मिलेगा जल्द न्याय? क्या उचित मुआवजे की उम्मीद कभी पूरी होगी, होगी तो
कैसे? गैस के दुष्प्रभाव से हुई बीमारियों का सिलसिला कितनी पीढिय़ों तक
चलेगा?... कैसे हो पाएगा जहरीले कचरे का निपटारा? हमने विशेषज्ञों के
माध्यम से इन्हीं सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की है। साथ में है गैस
पीडि़तों का दर्द उन्हीं की जुबानी-
सवाल आखिर कब
खत्म होगा जहरीली गैस का असर ?
जवाब यूनियन कार्बाइड कारखाने से रिसी मिथाइल आइसो साइनेट (मिक) का असर पीढ़ी-दर-पीढ़ी ही कम होगा। इसमें कितना वक्तलगेगा, यह तय कर पाना फिलहाल संभव नहीं है। त्रासदी के बाद मां से बेटे में आनुवांशिक रूप से आए जीन के कारण होने वाली विसंगतियों के आधार पर ही इसका निर्धारण हो सकता है। अगर वर्ष 2001 में मिक के कारण किसी गैस पीडि़त का बच्चा विकलांग पैदा हुआ है, तो उसकी अगली पीढ़ी में भी मिक के दुष्प्रभाव दिखेंगेे, लेकिन कुछ कम असर के साथ। इस तरह समय बीतने के साथ आनुवांशिक असर खत्म होगा।
- डॉ. बीपी दुबे, हेड, फोरेंसिक मेडिसिन, गांधी मेडिकल कॉलेज
न पर्याप्त दवाएं, न डॉक्टर
राज्य सरकार गैस पीडि़तों के चिकित्सकीय पुनर्वास के लिए अस्पताल खोलकर सिर्फ दिखावा कर रही है। गैस राहत अस्पतालों में न तो पर्याप्त दवाएं हैं और न ही अच्छे डॉक्टर। दो माह पहले इलाज के लिए बीएमएचआरसी के कार्डियोलॉजी डिपार्टमेंट में मैंने अपनी मां (शमीम) को भर्ती किया था, लेकिन डॉक्टरों की कमी के कारण इलाज में काफी दिक्कत आई। सरकार को गैस राहत अस्पतालों में बेहतर इलाज देने के लिए डॉक्टरों व अन्य स्टाफ की भर्ती करे और दवाओं की व्यवस्था करे।
सवाल
- कब तक चलेगा जहरीले कचरे का किस्सा? कब और कैसे होगा निपटान?
जवाब : जमीन में दफन करना ही बेहतर विकल्प
यूका कारखाना परिसर के गोदाम में रखे कचरे का निपटान केंद्र और राज्य सरकार इंसीनरेटर में जलाकर करना चाहती हैं। ऐसा हुआ तो यह दूसरी गैस त्रासदी होगी। कचरा जलाने से जहरीले रसायन हवा में मिल जाएंगे। सरकार को किसी स्थान का चयन करके कचरे को जमीन में दफन करना चाहिए। इससे पहले कचरे की अच्छी तरह वाटरपू्रफ पैकिंग करना चाहिए, ताकि इसमें जमीन का और बारिश का पानी न मिल सके। इसके अलावा गैस प्रभावित बस्तियों के प्रदूषित हुए भूजल को साफ करने के प्रयास भी किए जाएं।
- डॉ. दुनू रॉय, पर्यावरण वैज्ञानिक, डायरेक्टर, हेजार्ड सेंटर, नई दिल्ली एवं पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट देहरादून
जवाब उम्मीद बरकरार
भले ही देर से सही, पीडि़तों को उचित मुआवजा जरूर मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन दायर कर केंद्र सरकार ने यूका के अधिकारियों के साथ भोपाल की कोर्ट के बाहर हुए समझौते में ली गई राशि को अपर्याप्त बताते हुए इसमें बढ़ोतरी की मांग की है। साथ ही मुआवजे की राशि यूका की वर्तमान मालिक डाउ केमिकल्स से वसूलने की बात कही है। सरकार का यह रवैया गैस पीडि़तों के पक्ष में है।
- आग्नेय सैल, एडवोकेट (गैस त्रासदी मामले में सभी पीडि़तों को मुआवजा दिए जाने के मामले की सुप्रीम कोर्ट में कर रहे हैं पैरवी)
भूजल में मिल रहे जहरीले रसायन
गैस से फेफड़े पहले ही खराब हो चुके हैं। जहरीले कचरे के कारण भूजल लगातार दूषित हो रहा है। हादसे के इतने साल बाद भी पीने का साफ पानी मुहैया नहीं हो पाया है। सरकारें पीने के लिए साफ पानी मुहैया कराने का झूठा दावा कर रही हैं। इस पानी को पीने के कारण बच्चे विकलांग पैदा हो रहे हैं।
जवाब : सुप्रीम कोर्ट तय कर सकता है समय सीमा
गैस त्रासदी को 28 साल बीत चुके हैं। लंबा अरसा बीतने के बावजूद न दोषियों को सजा हुई और न पीडि़तों को न्याय मिला। केस की गति देखते हुए आखिरी फैसला आने में बरसों लग सकते हैं। इसलिए इसे विशेष मामला मानकर सुनवाई की जाना चाहिए। लंबे समय से चल रही कानूनी लड़ाई के कारण अब सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट फैसले के लिए समय सीमा भी तय कर सकते हैं। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर का मामला है। इसमें मल्टी नेशनल कंपनियां इन्वॉल्व हैं। केस के त्वरित निराकरण के लिए विशेष न्यायालय का गठन होना चाहिए। साथ ही डे-टू-डे सुनवाई होना चाहिए। न्याय की अवधारणा है कि अगर न्याय मिलने में देरी होती है, तो वह अपने आप में अन्याय की श्रेणी में आता है। इस मामले में अभी सिर्फ निचली अदालत से फैसला आया है।
- रेणु शर्मा, रिटायर्ड डीजे
दो बेटे खोए, मुआवजा सिर्फ 20 हजार
गैस त्रासदी में मेरे दो बेटों की मौत हो गई थी। मुआवजे के रूप में सिर्फ 20 हजार रुपए मिले। मुआवजा पाने भोपाल गैस पीडि़त कल्याण आयुक्त कार्यालय के चक्कर लगा-लगाकर थक गई हूं। अब तक मुआवजा नहीं मिला। गैस रिसाव के कारण मेेरे फेफड़े खराब हो गए। मैं बीएमएचआरसी में इलाज करा रही हूं। इलाज पर हर माह दो से पांच हजार रुपए खर्च हो रहे हैं। बेटों की मौत का मुआवजा पाने अब उन्होंने अपर कल्याण आयुक्त कार्यालय में अपील की है, जिस पर सुनवाई होना है। पता नहीं मुआवजा मिल पाएगा या नहीं।
सवाल आखिर कब
खत्म होगा जहरीली गैस का असर ?
जवाब यूनियन कार्बाइड कारखाने से रिसी मिथाइल आइसो साइनेट (मिक) का असर पीढ़ी-दर-पीढ़ी ही कम होगा। इसमें कितना वक्तलगेगा, यह तय कर पाना फिलहाल संभव नहीं है। त्रासदी के बाद मां से बेटे में आनुवांशिक रूप से आए जीन के कारण होने वाली विसंगतियों के आधार पर ही इसका निर्धारण हो सकता है। अगर वर्ष 2001 में मिक के कारण किसी गैस पीडि़त का बच्चा विकलांग पैदा हुआ है, तो उसकी अगली पीढ़ी में भी मिक के दुष्प्रभाव दिखेंगेे, लेकिन कुछ कम असर के साथ। इस तरह समय बीतने के साथ आनुवांशिक असर खत्म होगा।
- डॉ. बीपी दुबे, हेड, फोरेंसिक मेडिसिन, गांधी मेडिकल कॉलेज
न पर्याप्त दवाएं, न डॉक्टर
राज्य सरकार गैस पीडि़तों के चिकित्सकीय पुनर्वास के लिए अस्पताल खोलकर सिर्फ दिखावा कर रही है। गैस राहत अस्पतालों में न तो पर्याप्त दवाएं हैं और न ही अच्छे डॉक्टर। दो माह पहले इलाज के लिए बीएमएचआरसी के कार्डियोलॉजी डिपार्टमेंट में मैंने अपनी मां (शमीम) को भर्ती किया था, लेकिन डॉक्टरों की कमी के कारण इलाज में काफी दिक्कत आई। सरकार को गैस राहत अस्पतालों में बेहतर इलाज देने के लिए डॉक्टरों व अन्य स्टाफ की भर्ती करे और दवाओं की व्यवस्था करे।
सवाल
- कब तक चलेगा जहरीले कचरे का किस्सा? कब और कैसे होगा निपटान?
जवाब : जमीन में दफन करना ही बेहतर विकल्प
यूका कारखाना परिसर के गोदाम में रखे कचरे का निपटान केंद्र और राज्य सरकार इंसीनरेटर में जलाकर करना चाहती हैं। ऐसा हुआ तो यह दूसरी गैस त्रासदी होगी। कचरा जलाने से जहरीले रसायन हवा में मिल जाएंगे। सरकार को किसी स्थान का चयन करके कचरे को जमीन में दफन करना चाहिए। इससे पहले कचरे की अच्छी तरह वाटरपू्रफ पैकिंग करना चाहिए, ताकि इसमें जमीन का और बारिश का पानी न मिल सके। इसके अलावा गैस प्रभावित बस्तियों के प्रदूषित हुए भूजल को साफ करने के प्रयास भी किए जाएं।
- डॉ. दुनू रॉय, पर्यावरण वैज्ञानिक, डायरेक्टर, हेजार्ड सेंटर, नई दिल्ली एवं पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट देहरादून
जवाब उम्मीद बरकरार
भले ही देर से सही, पीडि़तों को उचित मुआवजा जरूर मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन दायर कर केंद्र सरकार ने यूका के अधिकारियों के साथ भोपाल की कोर्ट के बाहर हुए समझौते में ली गई राशि को अपर्याप्त बताते हुए इसमें बढ़ोतरी की मांग की है। साथ ही मुआवजे की राशि यूका की वर्तमान मालिक डाउ केमिकल्स से वसूलने की बात कही है। सरकार का यह रवैया गैस पीडि़तों के पक्ष में है।
- आग्नेय सैल, एडवोकेट (गैस त्रासदी मामले में सभी पीडि़तों को मुआवजा दिए जाने के मामले की सुप्रीम कोर्ट में कर रहे हैं पैरवी)
भूजल में मिल रहे जहरीले रसायन
गैस से फेफड़े पहले ही खराब हो चुके हैं। जहरीले कचरे के कारण भूजल लगातार दूषित हो रहा है। हादसे के इतने साल बाद भी पीने का साफ पानी मुहैया नहीं हो पाया है। सरकारें पीने के लिए साफ पानी मुहैया कराने का झूठा दावा कर रही हैं। इस पानी को पीने के कारण बच्चे विकलांग पैदा हो रहे हैं।
जवाब : सुप्रीम कोर्ट तय कर सकता है समय सीमा
गैस त्रासदी को 28 साल बीत चुके हैं। लंबा अरसा बीतने के बावजूद न दोषियों को सजा हुई और न पीडि़तों को न्याय मिला। केस की गति देखते हुए आखिरी फैसला आने में बरसों लग सकते हैं। इसलिए इसे विशेष मामला मानकर सुनवाई की जाना चाहिए। लंबे समय से चल रही कानूनी लड़ाई के कारण अब सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट फैसले के लिए समय सीमा भी तय कर सकते हैं। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर का मामला है। इसमें मल्टी नेशनल कंपनियां इन्वॉल्व हैं। केस के त्वरित निराकरण के लिए विशेष न्यायालय का गठन होना चाहिए। साथ ही डे-टू-डे सुनवाई होना चाहिए। न्याय की अवधारणा है कि अगर न्याय मिलने में देरी होती है, तो वह अपने आप में अन्याय की श्रेणी में आता है। इस मामले में अभी सिर्फ निचली अदालत से फैसला आया है।
- रेणु शर्मा, रिटायर्ड डीजे
दो बेटे खोए, मुआवजा सिर्फ 20 हजार
गैस त्रासदी में मेरे दो बेटों की मौत हो गई थी। मुआवजे के रूप में सिर्फ 20 हजार रुपए मिले। मुआवजा पाने भोपाल गैस पीडि़त कल्याण आयुक्त कार्यालय के चक्कर लगा-लगाकर थक गई हूं। अब तक मुआवजा नहीं मिला। गैस रिसाव के कारण मेेरे फेफड़े खराब हो गए। मैं बीएमएचआरसी में इलाज करा रही हूं। इलाज पर हर माह दो से पांच हजार रुपए खर्च हो रहे हैं। बेटों की मौत का मुआवजा पाने अब उन्होंने अपर कल्याण आयुक्त कार्यालय में अपील की है, जिस पर सुनवाई होना है। पता नहीं मुआवजा मिल पाएगा या नहीं।
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