सैटेलाइट डेस्क। मंगलवार को दीपों की रोशनी में अंचल नहा लिया।
आसमान में आतिशबाजी और घर-आंगन में बनी रंगोली ने खुशी को दोगुना कर दिया।
पूजन पाठ भी हुआ। बुधवार को धोक पड़वा पर अलग अलग परंपराएं निभाई जाएंगी।
इनमें गोवर्धन पूजा, गाय गोहरी, पाड़ा लड़ाई, धोक पड़वा और हिंगोट युद्ध
शामिल हैं।
चापड़ा : छावड़ा खेलने की परंपरा
देवास के चापड़ा में पड़वा पर छावड़ा (एक लकड़ी में मृत गाय के कान व
पेड़-पौधों की पत्तियों को बांधा जाता है) खेलने की परंपरा है। इसे देखकर
गाय छावड़ा रखने वाले व्यक्ति के पीछे गुस्से से दौड़ लगाती है।
चापड़ा-अमरपुरा में यह अनूठी परंपरा अरसे से चली आ रही है। अमावस्या
(मंगलवार-बुधवार की दरमियानी) की रात गांव के बुजुर्ग लोग रातभर हीड़ गाते
हैं। सुबह 5 बजे गांव में बलाई समाज प्रमुख छावड़ा लेकर लोगों के घर-घर
जाते हैं और छावड़ा (गेहूं, रुपए, मिठाई आदि) मांगते हैं। करीब 8 बजे यह
काम पूरा हो जाता है और गांव के सभी लोग गोये में एकत्रित होते हैं जहां
लोग गायों को सजाकर लाते हैं। छावड़ा दिखाने पर गाय संबंधित व्यक्ति के
पीछे भागती है। इसके अलावा सुबह 10 बजे गांव के पुजारी रविशंकर उपाध्याय
पंचांग पढ़ेंगे। यह कार्यक्रम उदयराव महाराज के मंदिर में होगा जिसमें गांव
के सभी लोग भाग लेते हैं। व्यापार, फसल आदि के लिए वर्ष कैसा रहेगा, इस
संबंध में भी पुजारी बताते हैं। बागली में मुस्लिम परिवार गोवंश की पूजा
करता है और गायों की आरती उतारता है।
महू: आज होगा सारा शहर सड़क पर
बुधवार को शहर के बाजार आबाद रहेंगे और पूरा शहर सड़क पर बधाई की गूंज
के साथ इकट्ठा होकर पर्व की खुशियां आपस में बांटेगा। खुशियों की
फूलझड़ियां छूटेगी और उत्साह के धमाके होंगे। पटाखों की लड़ी समृद्धि का
गूंजन करेंगी, वहीं मिठाई मुंह में रस घोलेगी। मिठाई और मुखरंजन के
व्यंजनों से आने वालों का स्वागत किया जाएगा। देवास नगर सहित जिले में भी
पड़वा मनाने का तरीका निराला है।
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