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14 नवंबर 2012

एक ऐसी परंपरा जहां 'माता' लड़ती है 'राक्षस' से युद्ध


अम्बाला. पापा, क्या राक्षस मर गया है? यह सवाल था पिता के कंधे पर बैठी कनिष्का का। जो उस जिज्ञासु भीड़ का हिस्सा थी, जो बुधवार को गांधी ग्राउंड में गायों व 'राक्षस' की लड़ाई देखने जुटी थी।
गोवर्धन पूजन के दिन अम्बाला में यदुवंशियों (ग्वाला समुदाय) की यह अनूठी परंपरा दशकों से चली आ रही है। इसमें सुअर को राक्षस का प्रतीक माना जाता है। गायें अपने सींगों से सुअर को मारती हैं।
हमेशा की तरह अंत में राक्षस मर जाता है। अम्बाला में गांधी ग्राउंड के अलावा रामबाग रोड पर दशहरा ग्राउंड में भी इसी परंपरा का निर्वाह किया गया।

ग्वाला समुदाय गायों को सुबह से सजाने में लग जाते हैं। गायों के शरीर पर रंग की छाप बनाई गई। सींगों को तेल व रंग से चमकाया गया। जानकी (85) देवी ने बताया कि इस दिन सुबह मवेशियों का गोबर आंगन में पूजा के लिए एकत्र किया जाता है।

यादव समाज के नेता हीरा लाल यादव बताते हैं कि यदुवंशियों की यह परंपरा कितनी पुरानी है, इसकी कोई तय तारीख तो नहीं बता सकता। ऐसी मान्यता है कि एक राक्षस ने सुअर का रूप धारण कर भगवान श्री कृष्ण पर हमला किया था।
इसी वजह से सुअर को राक्षस का प्रतीक माना जाता है। परंपरा के मुताबिक दिवाली की शाम और गोवर्धन पूजन की सुबह ग्वाले दूध नहीं बेचते। हर घर में दूध के साथ गोवर्धन पूजा होती है और उसके बाद दूध को प्रसाद के रूप में बांट दिया जाता है।

बता दें कि पहले गोवर्धन पूजन के लिए ग्वाल समुदाय के लोग डांडिया खेलते थे। धीरे-धीरे डांडिया का स्थान लट्ठबाजी ने ले लिया। समुदाय के लोग कई दिनों की मेहनत से लट्ठ तैयार करते हैं और इस दिन अपनी प्रतिभा व दम दिखाते हैं।
श्री रामबाग गोशाला में 20 नवंबर को गोपाष्टमी उत्सव मनाया जाएगा। इसमें मध्य प्रदेश के जिला शिवपुरी से ब्रह्मचारी विनय सागर महाराज पधारेंगे। गौशाला समिति के सचिव कमल कौशिक ने बताया सुबह 9.30 बजे हवन होगा। 10.30 बजे से प्रवचन होगा।

नगाड़े बजाकर संघर्ष का ऐलान
गांधी ग्राउंड में कई गायों को सजा-धजा कर उनके बछड़े व बछडिय़ों के साथ लाया गया था। बैंड की धुन पर नाचते-गाते ग्वाला समुदाय के लोग पहुंचे। नगाड़े और घंटियां बजाकर संघर्ष का ऐलान किया गया।
सुअर को गायों के आगे किया गया तो गायों ने उसे सींगों से उछाला। करीब आधे घंटे संघर्ष चला। गायें कई बार आक्रामक होकर भीड़ की तरफ भी भागी।
दूसरी तरफ रामबाग के दशहरा ग्राउंड में तो इस बार नोटों की लड़ाई भी कराई गई। यह नजारा काफी खतरनाक था, खासकर इसलिए भी क्योंकि यहां कोई सुरक्षा के इंतजाम नहीं थे।
बावजूद इसके सबकुछ शांतिपूर्ण निपट गया। गाहे बगाहे पशु क्रूरता का तर्क देकर इस परंपरा का विरोध भी होता रहा है लेकिन आस्था के आगे कोई तर्क नहीं चलता।

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