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25 नवंबर 2012

मुहर्रम: सिर्फ 8 दिन में ही उजड़ गई थी कर्बला की बस्ती


 

कर्बला का नाम सुनते ही मन खुद-ब-खुद कुर्बानी के ज़ज्बे से भर जाता है। जब से दुनिया का वजूद कायम हुआ है तब से लेकर अब तक न जानें कितनी बस्तियां बनी और उजड़ गई लेकिन कर्बला की बस्ती के बारे में ऐसा कहते हैं कि यह बस्ती सिर्फ 8 दिनों में ही तबाह कर दी गई।
2 मुहर्रम 61 हिजरी में कर्बला में इमाम हुसैन के काफिले को जब याजीदी फौज ने घेर लिया तो हुसैन साहब ने अपने साथियो से यहीं खेमे लगाने को कहा और इस तरह कर्बला की यह बस्ती बसी। इस बस्ती मे इमाम हुसैन के साथ उनका पूरा परिवार और चाहने वाले थे। बस्ती के पास बहने वाली फुरात नदी के पानी पर भी याजीदी फौज ने पहरा लगा दिया।
7 मुहर्रम को बस्ती में जितना पानी था सब खत्म हो गया। 9 मुहर्रम को याजीदी फौज के कमांडर इब्न साद ने अपनी फौज को हुक्म दिया दुश्मनों पर हमला करने के लिए तैयार हो जाए। उसी रात इमाम हुसैन ने अपने साथियों को इकट्ठा किया। तीन दिन का यह भूखा, प्यासा कुनबा रात भर इबादत करता रहा। इसी रात (9 मुहर्रम की रात) को इस्लाम में शबे आशूर के नाम से जाना जाता है।
दस मुहर्रम की सुबह इमाम हुसैन ने अपने साथियों के साथ नमाज़-ए फज्र अदा किया। इमाम हुसैन की तरफ  से सिर्फ 72 ऐसे लोग थे जो मुक़ाबले मे जा सकते थे। यजीद की फौज और इमाम हुसैन के साथियों के बीच युद्ध हुआ जिसमें इमाम हुसैन अपने साथियों के साथ नेकी की राह पर चलते हुए शहीद हो गए। और इस तरह कर्बला की यह बस्ती 10 मुहर्रम को उजड़ गई।
 

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