कोटा. आम अवधारणा है मदरसों में केवल मुस्लिम बच्चों को उर्दू तालीम
दी जाती है, लेकिन कोटा के एक गांव में हिन्दू बच्चे भी मदरसों में पढ़
रहे हैं। गांव में एक प्राइमरी, एक मिडिल और एक सैकंडरी स्कूल भी है, लेकिन
ग्रामीणों ने यह पहल सामाजिक सद्भाव को बढ़ाने के लिए की है। मदरसे में
पढ़ रहे 48 में से 13 बच्चे हिन्दू परिवारों के हैं।
ईद और दीपावली के अलावा सभी तीज-त्योहारों को गांव के हिन्दू-मुस्लिम साथ मिलकर मनाते हैं। 9 साल की कर्मा और उसकी 11 साल की किस्मत लुहावद (इटावा) गांव के मदरसे में पढ़ रही हैं। वे हिन्दू और गणित के साथ उर्दू लिखने व बोलने भी लगी हैं। मदरसे में 48 में से 13 ऐसे हिंदू बच्चे हैं, जो रोज घर से पूजा कर मदरसे में आते हैं। बच्चों की इस लगन से गांव के लोग भी कौमी एकता का पाठ सीख रहे हैं।
गांव में ईद और दीवाली साथ-साथ मिलकर मनाई जाती है। मदरसा अंजुमन इस्लामिया में हिंदू और मुस्लिम बच्चे एक साथ बैठकर अ आ इ ई के साथ अली बे ते (सिपारा) भी पढ़ रहे हैं। मदरसा पिछले दस से साल चल रहा है। अभिभावकों का मानना है कि बच्चों को धर्म से ज्यादा इंसानियत का पाठ पढ़ाया जा रहा है। किस्मत, कर्मा के अलावा रोशन, नारायण, निकिता, मनीषा, रोहित महावर, किरण सहित 13 बच्चे हैं, जो अलग-अलग कक्षाओं में पढ़ रहे हैं।
ईद व दीवाली साथ-साथ मनाते हैं: गांव के सरपंच रफीक पठान बताते हैं कि तीन साल पहले सरपंच बनते ही उन्होंने भी मिसाल को कायम रखने के लिए प्रयास शुरू कर दिए। अब मदरसे में हिन्दू बच्चे की संख्या बढ़ गई है। उनका कहना है कि मदरसे का ही असर है कि गांव में ईद व दीवाली सहित अन्य सभी तीज-त्यौहार हिन्दू-मुस्लिम साथ-साथ मनाते हैं। इस मदरसे को आदर्श बनाने के लिए भी वे इसे व्यापक बनाना चाहते हैं।
घर पर भी पढ़ते हैं उर्दू : तीन बेटियां किस्मत, कर्मा और मंशापूर्ण के पिता बाबूलाल बैरवा बताते हैं कि उनकी बेटियां घर पर भी उर्दू पढ़ती हैं। इनके माता-पिता बताते हैं कि उर्दू का ज्ञान लेना भी बच्चों के लिए अच्छा है। एक दूसरे की संस्कृति का पता चलता है।
ईद और दीपावली के अलावा सभी तीज-त्योहारों को गांव के हिन्दू-मुस्लिम साथ मिलकर मनाते हैं। 9 साल की कर्मा और उसकी 11 साल की किस्मत लुहावद (इटावा) गांव के मदरसे में पढ़ रही हैं। वे हिन्दू और गणित के साथ उर्दू लिखने व बोलने भी लगी हैं। मदरसे में 48 में से 13 ऐसे हिंदू बच्चे हैं, जो रोज घर से पूजा कर मदरसे में आते हैं। बच्चों की इस लगन से गांव के लोग भी कौमी एकता का पाठ सीख रहे हैं।
गांव में ईद और दीवाली साथ-साथ मिलकर मनाई जाती है। मदरसा अंजुमन इस्लामिया में हिंदू और मुस्लिम बच्चे एक साथ बैठकर अ आ इ ई के साथ अली बे ते (सिपारा) भी पढ़ रहे हैं। मदरसा पिछले दस से साल चल रहा है। अभिभावकों का मानना है कि बच्चों को धर्म से ज्यादा इंसानियत का पाठ पढ़ाया जा रहा है। किस्मत, कर्मा के अलावा रोशन, नारायण, निकिता, मनीषा, रोहित महावर, किरण सहित 13 बच्चे हैं, जो अलग-अलग कक्षाओं में पढ़ रहे हैं।
ईद व दीवाली साथ-साथ मनाते हैं: गांव के सरपंच रफीक पठान बताते हैं कि तीन साल पहले सरपंच बनते ही उन्होंने भी मिसाल को कायम रखने के लिए प्रयास शुरू कर दिए। अब मदरसे में हिन्दू बच्चे की संख्या बढ़ गई है। उनका कहना है कि मदरसे का ही असर है कि गांव में ईद व दीवाली सहित अन्य सभी तीज-त्यौहार हिन्दू-मुस्लिम साथ-साथ मनाते हैं। इस मदरसे को आदर्श बनाने के लिए भी वे इसे व्यापक बनाना चाहते हैं।
घर पर भी पढ़ते हैं उर्दू : तीन बेटियां किस्मत, कर्मा और मंशापूर्ण के पिता बाबूलाल बैरवा बताते हैं कि उनकी बेटियां घर पर भी उर्दू पढ़ती हैं। इनके माता-पिता बताते हैं कि उर्दू का ज्ञान लेना भी बच्चों के लिए अच्छा है। एक दूसरे की संस्कृति का पता चलता है।
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