भाइयों एक कडवा सच जिसे में उन्नीस सालों में भी ना बदल सका ...देश में
न्यूयार्क सम्मेलन के बाद अंतर्राष्ट्रीय दबाव में मानवाधिकार आयोग का गठन
किया गया एक मानवाधिकार कानून बनाया गया जिसें राष्ट्रीय मानवाधिकार
अधिनियम १९९३ कहा गया यानी उन्नीस साल पहले वर्ष १९९३ में मानवाधिकार
संरक्षण का कानून बना और अब तक राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में आधे दर्जन से
भी ज्यादा राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये जा चुके है जो अध्यक्ष बने है सभी दबंग
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टीस रहे है जिन्होंने नेतिक मूल्यों की बात की
कानून का राज लाने की बात की और पीड़ितों को न्याय की बात की लेकिन अरबो
खरबों रूपये राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर इस आयोग और राज्य आयोगों पर खर्च
के बाद भी आज तक किसी भी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष ने १९९३ में
बने कानून को लागु करने के लियें सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा नहीं खट खटाया
है ना ही इन्साफ के तकाज़े के तहत सरकार पर दबाव बनाया है दोस्तों
मानवाधिकार संरक्षण कानून में १९९३ में मानवाधिकार हनन के मामलों की सुनवाई
के लियें प्रत्येक जिले में विशेष अदालतों के गठन का प्रावधान है और इस
प्रावधान को देश में उन्नीस साल गुजरने के बाद भी किसी भी अध्यक्ष ने लागू
करवाने का प्रयास नहीं किया है हमारी ह्युमन रिलीफ सोसाइटी के माध्यम से
में एडवोकेट अख्तर खान अकेला और एडवोकेट आबिद अब्बासी हर साल दस दिसम्बर
मानवाधिकार दिवस पर काला दिवस मनाकर प्रधानमन्त्री ..राष्ट्रपति और खुद
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष को ज्ञापन भेजते है लेकिन ना जाने
वोह ज्ञापन कहाँ और किस कचरे की टोकरी में जाते है पता नहीं चल सका है
...इसी तरह से राजस्थान में पुलिस अधिनियम २००७ में लागू हुआ निरंकुश पुलिस
पर अंकुश लगाने के लियें जवादार समिति सहित कई आयोग और समितियों के गठन का
प्रावधान है इस मामले में भी लगातार पत्र लिखे जा रहे है लेकिन कोई पुलिस
की निमामता और निरंकुशता पर अंकुश लगाकर जनता को इंसाफ दिलाना ही नहीं
चाहता तो फिर केसा मानवाधिकार केसा कौन दोस्तों हम तो इस बार भी दस दिसम्बर
मानवाधिकार दिवस पर काला दिवस मनाकर इस मांग को फिर आगे बढ़ाएंगे लेकिन आप
से भी मदद की दरकार है प्लीज़ एक कमेन्ट एक पत्र मानवाधिकार आयोग और राष्ट्रपति जी को ज़रूर लिखिए जनाब ...............अख्तर खान अकेला कोटा
राजस्थान
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