जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरुण मिश्रा ने एक
स्टडी का हवाला देते हुए कहा कि गिरफ्तार लोगों में से 65 प्रतिशत लोग
निर्दोष होते हैं। ये न्याय व्यवस्था के लिए सही नहीं है। उन्होंने सवाल
उठाया कि किसी मामले में ट्रायल में 15 से 20 साल लगते हैं। इस दौरान
व्यक्ति न्यायिक हिरासत में रहता है और बाद में निर्दोष साबित हो जाता है।
ऐसे में क्या उसके जीवन का कोई हर्जाना तय हो सकता है? शुक्रवार को तीन
दिवसीय वेस्ट जोन रीजनल ज्युडिशियल कॉन्फ्रेंस के उद्घाटन सत्र में मुख्य
न्यायाधीश ने कहा कि गिरफ्तारी से पहले पुलिस को मामले के सभी पहलुओं की
जांच करनी चाहिए और व्यक्ति को यह बताना चाहिए कि उसे क्यों गिरफ्तार किया
जा रहा है। पुलिस गिरफ्तार व्यक्ति के परिजनों को सूचित करे और देखे कि
उसके अधिकार कैसे संरक्षित रहें। उसको कानूनी सहायता मुहैया कराई जानी
चाहिए। जेल में व्यक्ति को उचित खाना, इलाज व देखभाल मुहैया करानी चाहिए,
ताकि जेल से व्यक्ति बाहर आए तो वह सुधरकर निकले न कि खतरनाक अपराधी बनकर।
इससे पहले तीन दिवसीय कॉन्फ्रेंस का उद्घाटन सुप्रीम कोर्ट के पूर्व
न्यायाधीश सीके ठक्कर ने किया। कॉन्फ्रेंस का आयोजन राजस्थान हाईकोर्ट,
नेशनल ज्यूडिशियल एकेडमी भोपाल व राजस्थान स्टेट ज्यूडिशियल एकेडमी कर रही
है। इसमें राजस्थान सहित मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र व गुजरात के 80 से ज्यादा
न्यायिक अफसर भाग ले रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अधीनस्थ कोर्ट को
निष्पक्ष अनुसंधान तय करने का अधिकार है क्योंकि ऊपरी अदालतों में तकनीकी
बिन्दुओं पर ही मामला चलता है। जल्द ट्रायल होनी चाहिए क्योंकि इसमें देरी
पीडि़त ही भुगतता है। इसलिए जल्द ट्रायल के उपाय ढूंढने चाहिए, लेकिन
मशीनरी तरीके से काम नहीं हो। सुप्रीम कोर्ट तक कम लोग जाते हैं। अदालतों
को अनावश्यक स्थगन नहीं देने चाहिए। किसी जज के खिलाफ भी पुलिस एफआईआर दर्ज
कर सकती है.. इस मुद्दे पर भी विचार करना है। 60 साल बाद भी नहीं मिले
अधिकार सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एके गांगुली ने कहा कि देश को
लोकतांत्रिक हुए 60 साल हो गए हैं लेकिन लोगों को समानता व स्वतंत्रता का
अधिकार पूरी तरह से नहीं मिला है। सभी के लिए निष्पक्ष ट्रायल होना चाहिए
चाहे वह आरोपी ही क्यों न हो। भारतीय संविधान मानव अधिकार का दस्तावेज है,
न्यायिक अधिकारी संविधान के प्रावधानों का भी पालन करें। लोगों के आधारभूत
अधिकारों में पक्षपात नहीं किया जा सकता। अलग अलग बेंच अलग निर्णय देती
हैं, लेकिन इनमें एकरूपता होनी चाहिए। निर्दोष को सजा नहीं हो सुप्रीम
कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश सीके ठक्कर ने कहा कि पढ़ते आए हैं कि चाहे 99
अपराधी बरी हो जाएं लेकिन एक निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए, लेकिन ऐसा
क्यों। अब 99 अपराधी बरी नहीं होने चाहिए बल्कि एक निर्दोष को सजा नहीं
होनी चाहिए। कोई भी अपराधी न तो सजा से बचना चाहिए और न ही निर्दोष को सजा
होनी चाहिए। अपराध समाज के खिलाफ है और संदेह का लाभ सोच समझकर देना चाहिए।
कोई व्यक्ति पूरे समाज को प्रभावित करने के मुद्दे को चुनौती देता है तो
हमें उसे सुनने से इंकार नहीं करना चाहिए। कानून के अनुसार कसाब को सहायता
मुंबई पर आतंकी हमले के दोषी कसाब को कानूनी सहायता देने के प्रश्न के
जवाब में न्यायाधीश गांगुली ने कहा कि कसाब को संविधान के प्रावधानों पर
कानूनी सहायता मुहैया कराई है। सभी को न्याय के लिए समान अवसर मिलना चाहिए
चाहे कोई देश का नागरिक ही नहीं हो।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
05 अक्तूबर 2012
गिरफ्तार लोगों में से 65 प्रतिशत निर्दोष : मुख्य न्यायाधीश
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जज यह बात जानते हुए भी पुलिस की बातों (लेखन और जाँच) पर विश्वास करते हैं. जज खुद क्यों नहीं ऐसे पुलिस कर्मचारियों के खिलाफ कार्यवाही करते हैं. जजों को ऐसे पुलिस कर्मचारियों को कड़ी सजा देते हुए मुआवजा भी दिलवाना चाहिए.
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