दरअसल, विष्णु अवतार भगवान श्रीराम ने भी मानवीय रूप में जन-जन का भरोसा और विश्वास अपने आचरण और असाधारण गुणों से ही पाया। उनकी चरित्र की खास खूबियों से ही दंभी रावण के हौसले पस्त हुए और आखिरकार श्रीराम के आगे धराशायी हुआ। इससे वह न केवल लोकनायक बने, बल्कि युगान्तर में भी भगवान के रूप में पूजित हुए।
वाल्मीकि रामायण में भगवान श्रीराम की ऐसे ही सोलह गुण बताए गए हैं, जो आज भी नेतृत्व क्षमता बढ़ाने व किसी भी क्षेत्र में अगुवाई करने के अहम सूत्र हैं, जानिए इन गुणों को आज के संदर्भ में मतलब के साथ -
- गुणवान (ज्ञानी व हुनरमंद)
- वीर्यवान (स्वस्थ्य, संयमी और हष्ट-पुष्ट)
- धर्मज्ञ (धर्म के साथ प्रेम, सेवा और मदद करने वाला)
- कृतज्ञ (विनम्रता और अपनत्व से भरा)
- सत्य (सच बोलने वाला, ईमानदार)
- दृढ़प्रतिज्ञ (मजबूत हौंसले वाला)
- सदाचारी (अच्छा व्यवहार, विचार)
- सभी प्राणियों का रक्षक (मददगार)
- विद्वान (बुद्धिमान और विवेक शील)
- सामर्थ्यशाली (सभी का भरोसा, समर्थन पाने वाला)
- प्रियदर्शन (खूबसूरत)
- मन पर अधिकार रखने वाला (धैर्यवान व व्यसन से मुक्त)
- क्रोध जीतने वाला (शांत और सहज)
- कांतिमान (अच्छा व्यक्तित्व)
- किसी की निंदा न करने वाला (सकारात्मक)
- युद्ध में जिसके क्रोधित होने पर देवता भी डरें (जागरूक, जोशीला, गलत बातों का विरोधी)
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