ऐतिहासिक पृष्ठभूमि माना जाता है कि ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती साहिब सन 1195 ई में मदीना से भारत आए थे। ख्वाजा साहिब ऐसे व़क्त भारत में आए, जब मोहम्मद गौरी की फौज पृथ्वी राज चौहान से पराजित होकर वापस गजनी की ओर भाग रही थी। उन लोगों ने ख्वाजा साहिब से कहा कि आप आगे न जाएं। आगे जाने पर आपके लिए ख़तरा पैदा हो सकता है, चूंकि मोहम्मद गौरी की पराजय हुई है। मगर ख्वाजा साहिब नहीं माने। वह कहने लगे, चूंकि तुम लोग तलवार के सहारे दिल्ली गए थे, इसलिए वापस आ रहे हो। मगर मैं अल्लाह की ओर से मोहब्बत का संदेश लेकर जा रहा हूं। थोड़ा समय दिल्ली में रुककर वह अजमेर चले गए और वहीं रहने लगे। वह जब 97 वर्ष के हुए तो उन्होंने ख़ुद को घर के अंदर बंद कर लिया। जो भी मिलने आता, वह मिलने से इंकार कर देते। नमाज अता करते-करते वह एक दिन अल्लाह को प्यारे हुए, उस स्थान पर उनके चाहने वालों ने उन्हें दफ़ना दिया और क़ब्र बना दी। बाद में उस स्थान पर उनके चाहने वालों ने मकबरा बना दिया, जिसे आजकल ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती का मकबरा कहते है।
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