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30 सितंबर 2012

बस.. तब से श्मशान में ही बस गई मां




 
सीकर. शिवधाम धर्माणा श्मशान घाट। शवयात्रा आते ही एक पेड़ के नीचे बैठी 50 साल की महिला झट से उठकर लोगों की सेवा में जुट जाती है। कभी लोगों को पानी पिलाने लगती है। तो कभी अंतिम क्रिया के लिए लकड़ियां लाने में जुट जाती है, तो कभी चिता पर कांपते हाथों से लकड़ियां रखती है।


लोग हैरत में। किसी को लगता है शायद मृतक के परिवार की कोई रिश्तेदार होगी। तभी दूसरी शवयात्रा आती है तो यह महिला उधर चली जाती है। वहां भी इसी प्रकार की सेवा। पता किया तो चौंकाने वाली जानकारी मिली। इस बुजुर्ग महिला का नाम है राजू कंवर। पौने चार साल से यही उसकी दिनचर्या है। पूछने पर पता चला कि एक हादसे में काल का शिकार हुए 22 साल के जवान इकलौते बेटे की चिता को खुद मुखाग्नि देने के बाद वह आज तक घर नहीं गई। वैसे भी किराए के एक कमरे के सिवा उसके पास था ही क्या। उसे भी छोड़ आई। तब से ये श्मशान ही उसका घर है।

वह यहां क्यों आई

कुछ टूटते बिखरते शब्दों से उसने दर्दभरी कहानी सुनाई। एक लंबी सांस और आसमान की ओर टकटकी लगाने के बाद पहला शब्द था- तीन दिसंबर 2008। फिर बोली- कोई पौने चार साल हो गए मेरे इंदर को मरे। बस वही तो इकलौता इस दुनिया में मेरा सहारा था। पति तो पहले ही गुजर गए। तब से ससुराल छोड़ आई। यहां सीकर में राजश्री सिनेमा के पास पीहर में मां का आसरा था। वो भी चल बसीं।

जैसे तैसे इंदर को पाला, पढ़ाया- लिखाया। वह एक दुकान पर नौकरी भी करने लगा। आस लगाई, वह बुढ़ापे का सहारा बनेगा। अर्थी को कांधा देगा लेकिन ये सब मुझे करना..कहते-कहते राजू कंवर के शब्द थम गए।


फिर पथरायी सी आंखों में भर आए आंसू पोंछते हुए बोली-एक मां का खुद अपने 22 साल के जवान बेटे की चिता को मुखाग्नि देने से बड़ा दुख दुनिया में दूसरा क्या होगा? श्मशान घाट में एक जलती चिता की ओर इशारा करते हुए बोली ‘यहीं है मेरा इंदर’। पौने चार साल हो गए। लोग कहते हैं, वो नहीं रहा। मुखाग्नि भी मैंने ही दी, इसी जगह। अस्थियां भी खुद ही बहा कर आई हूं हरिद्वार में। पर, मां हूं ना। कलेजा नहीं मानता। वह निर्मोही तो मुझे अकेला छोड़ गया। मैं कैसे जाऊं उसे यहां अकेला छोड़कर।

आखिरी वक्त में बेटे का चेहरा भी नहीं देख पाई

लोग कहते हैं कि इंदर का एक्सीडेंट हुआ। अब आप ही बताइए, पोस्टमार्टम रिपोर्ट में चार इंच का घाव बताया। डाक्टर बोले-वह साढ़े सात घंटे तक जीया। भला ऐसा कैसे हो सकता है ? मुझसे मिलाया तक नहीं। चेहरा तक नहीं देखने दिया उसका। अब तो बस यहां लोगों की सेवा कर रोज मेरा इंदर ढूंढ़ती हूं।


-राजू कंवर

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