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29 सितंबर 2012

जॉर्ज के साले हैं नए चीफ जस्टिस कबीर, वकालत शुरू करते ही हुआ था इश्‍क



जॉर्ज के साले हैं नए चीफ जस्टिस कबीर, वकालत शुरू करते ही हुआ था इश्‍क

 
नई दिल्‍ली. देश के नए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अल्तमस कबीर का संबंध एक रसूखदार और देश के जाने-माने परिवार से है। पिता और चाचा मंत्री रहे। बहन भी हाई कोर्ट जज हैं। जस्टिस कबीर समाज के कमजोर वर्गों के प्रति बेहद संवेदनशील हैं। इसकी झलक उनके निजी जीवन और काम में भी दिखती है।
अल्तमस का जन्म 19 जुलाई 1948 को फरीदपुर (अब बांग्लादेश में) में हुआ था। परिवार के कुछ लोग अब भी वहां रहते हैं। उनके पिता जहांगीर और चाचा हुमायूं कबीर कोलकाता में बस गए। पिता ट्रेड यूनियन लीडर थे। 1967 में पश्चिम बंगाल की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार में वे मंत्री रहे। चाचा कई दफा केंद्रीय मंत्री रहे। अल्तमस की सगी बहन लैला पूर्व केंद्रीय मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज की पत्नी हैं, लेकिन युवा अल्तमस का झुकाव कानून की ओर था।
उनके परिवारजन उनके स्नेह के अनेक किस्से बयां करते हैं। उनकी छोटी बहन शिरीन कबीर मिर्जा कहती हैं कि स्कूल में किसी बच्चे ने अल्तमस को केक दिया, लेकिन उन्होंने उसे बहनों के लिए जेब में रख लिया। शाम को घर पहुंचते-पहुंचते केक का पाउडर बन गया, लेकिन उनका ये प्रेम बहनों को जिंदगी भर याद रह गया।
1973 से उन्होंने वकालत शुरू की। इसी दौरान अपने घर के ठीक नीचे रहने वाली मीना से उन्हें प्रेम हुआ। वह कैथोलिक ईसाई थी। दोनों ने पहले चर्च में शादी की फिर निकाह किया।
हमारे रांची संवाददाता सतीश कुमार के अनुसार झारखंड के चीफ जस्टिस रहते जस्टिस कबीर ने बिहार और झारखंड सरकारों पर 50-50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया। क्योंकि एकीकृत बिहार में एक बच्ची को रांची रेलवे स्टेशन पर बिना टिकट पकड़कर छह साल तक महिला सुधार गृह में रखा। जुर्माने की राशि भी सुधार गृह को दिलवा दी। बाद में उन्होंने नामुकुम स्थित इस सुधार गृह को गोद ले लिया। आज इस आश्रम की भी 43 सदस्य अल्तमस को पापा और उनकी पत्नी को मम्मी कहती हैं।

जस्टिस आरके मेरठिया (झारखंड हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश) ने भास्कर संवाददाता सतीश कुमार को जस्टिस कबीर के बारे में बताया कि वह अच्‍छा गाते भी हैं। रांची का एक वाकया याद करते हुए वह बताते हैं कि एक बार जस्टिस कबीर, पत्नी मीना कबीर के साथ रांची के महिला प्रोबेशन होम गए थे। वहां की बच्चियां सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश कर रही थीं। सभी बारी-बारी से आती और गीत सुनाती। इस दौरान एक बच्ची जब स्टेज पर आई तो गीत भूल गई। जस्टिस कबीर मंच से उतर कर बच्ची के पास गए और उसके साथ गीत गाने लगे। वह बच्ची को मायूस नहीं देख सकते थे। हालांकि जस्टिस कबीर खुद भी अच्छा गाते हैं और उनकी आवाज भी मधुर है। 
 
बच्ची को माता पिता से मिलाया 
 
एकीकृत बिहार के समय एक छोटी सी लड़की को किसी स्टेशन से बिना टिकट पकड़ा गया। उस पर 300 रुपए का जुर्माना लगाया गया। माता-पिता के नहीं मिलने पर उसे प्रोबेशन होम में डाल दिया गया। फाइल मजिस्ट्रेट और प्रोबेशन होम के बीच घूमती रही। इसमें सात से आठ साल का समय बीत गया। आखिरकार मामला हाईकोर्ट पहुंचा। चीफ जस्टिस कबीर और मैं (जस्टिस आरके मेरठिया) मामले की सुनवाई कर रहा था। हमें इस बात पर बेहद दुख हुआ कि महज 300 रुपए के लिए छोटी सी बच्ची वर्षों तक मां-बाप से अलग रही। तब तक झारखंड बन चुका था। हमने बिहार और झारखंड सरकार को नोटिस जारी कर लड़की के माता-पिता को खोजने को कहा। मां-बाप के मिलने के बाद लड़की को उन्हें सौंप दिया गया। दोनों राज्य सरकारों पर पर 50-50 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया। यह राशि लड़की के परिजनों को दी गई।
जस्टिस कबीर विनम्र हैं। सौम्य हैं। क्रोधित नहीं होते। किसी के प्रति द्वेष नहीं रखते। गंभीरता से बात सुनते हैं। वकीलों को तर्क करने की अनुमति प्रदान करते हैं। हंसी मजाक भी करते हैं। पर कानून का दायरा कोई पार करे, इसे कभी बर्दाश्त नहीं करते।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शनिवार को जस्टिस अल्तमस कबीर को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पद की शपथ शपथ दिलाई। वे 39वें मुख्य न्यायाधीश हैं और उन्होंने जस्टिस एसएच कापडिय़ा की जगह ली है। कबीर न्यायपालिका के शीर्ष पद पर पहुंचने वाले मुस्लिम समुदाय के चौथे व्यक्ति हैं। जस्टिस कबीर 9 माह 18 दिन तक मुख्य न्यायाधीश की कुर्सी पर रहेंगे। 18 जुलाई 2013 को उनका कार्यकाल पूरा होगा। वे 9 सितंबर 2005 को सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त हुए थे। जस्टिस कबीर सुप्रीम कोर्ट के ऐसे दूसरे मुख्य न्यायाधीश हैं जिनका जन्म आजादी के बाद हुआ है। जस्टिस कपाडिया ऐसे पहले मुख्य न्यायाधीश थे। 
 
शनिवार को हुए शपथ ग्रहण समारोह में उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई लोग मौजूद थे। इसके अलावा कई दलों के नेता भी कार्यक्रम में शामिल हुए।
दो अहम केस, जिन पर उन्हें फैसले लेने हैं: 
 
1. प्रशांत भूषण के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों को भ्रष्ट बताने पर उनके खिलाफ दायर अवमानना याचिका। 
 
2. काले धन की जांच करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को केंद्र सरकार द्वारा अव्यावहारिक बताकर खारिज करने पर।

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