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10 सितंबर 2012

थाना बना दरिंदगी का अड्डा: लूटी गई विवाहिता की आवरू, पिटता रहा भाई



 

जयपुर.पुलिस की सरपरस्ती में अभी तक अपराध पल-बढ़ रहे थे, लेकिन नागौर के मौलासर थाने में अवैध हिरासत में रखे भाई-बहन से पुलिस ने अमानवीयता की सारे हदें पार कर दीं। पुलिस ने हत्या, अपहरण एवं चोरी की आशंका में मौसेरे भाई-बहन एवं उनके रिश्तेदार को 22 दिन तक थाने में अवैध तरीके से हिरासत में बंद रखा।

इस दौरान न सिर्फ पुलिसकर्मियों ने उनसे मारपीट कर प्रताड़ित किया, बल्कि विवाहिता से थाने में ही ज्यादती (आईपीसी की धारा 376 का जुर्म ) कर दी। भाई- बहन जब अवैध पुलिस हिरासत में थे, तब तत्कालीन नागौर एसपी, एएसपी और सीओ आदि थाने आ गए थे।

इस बीच जिसकी हत्या एवं अपहरण की आशंका थी, वो व्यक्ति सकुशल घर आ गया। उसने मर्जी से सालासर मंदिर जाना बताया, तब जाकर पुलिस ने मौसेरे भाई-बहन एवं उनके रिश्तेदार युवक को छोड़ा।

राज्य मानवाधिकार आयोग की ओर से 7 सितंबर 2012 को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, मुख्य सचिव और गृह विभाग को प्रताड़ना के इस गंभीर प्रकरण की अति गोपनीय जांच रिपोर्ट भेजी है। इन गोपनीय दस्तावेजों में राज्य पुलिस की शर्मनाक एवं हिलाकर रख देने वाली यह कारस्तानी सामने आई है।

जांच में दोषी मानते हुए मानवाधिकार आयोग ने पीड़िता से थाने में ज्यादती करने वाले पुलिसकर्मियों और पूर्व में ससुराल में ज्यादती करने वाले दो रिश्तेदारों के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 के तहत आपराधिक मुकदमा दर्ज करने की सिफारिश की है।साथ ही अवैध हिरासत एवं मारपीट को लेकर मौलासर थाना प्रभारी नवनीत व्यास, पुलिस उपाधीक्षक हेमाराम चौधरी एवं मारपीट में शामिल पुलिसकर्मियों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज करने की सिफारिश की है।
इसके अलावा आयोग की जांच रिपोर्ट में अवैध हिरासत को लेकर समान रूप से दोषी मानते हुए नागौर के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक और एएसपी अशोक कुलश्रेष्ठ के खिलाफ विभागीय कार्रवाई के लिए कहा है। पीड़िता को 5 लाख रुपए और मारपीट के शिकार दोनों युवकों को 2- 2 लाख रुपए का मुआवजा देने की अनुशंसा की है।

मंजर याद आने पर डर और सहम जाती हूं

राज्य मानवाधिकार आयोग के सदस्य एम. के देवराजन के समक्ष रामप्यारी ने 3 सितंबर 2012 को जयपुर आकर बयान दिए। गहन पूछताछ में रामप्यारी (बदला नाम) ने आयोग को पूर्व मैं दिए अपने सारे बयान एवं तथ्यों को दोहराया है। कहा कि ससुराल वालों ने भींवाराम को खत्म करने का आरोप लगाया। सास, जेठानी और जीजा ने मारपीट की।

तीनों ने 18 दिसंबर 2011 को मौलासर थाने ले जाकर छोड़ दिया। मौलासर थाने के स्टाफ एवं डीडवाना थाने के किसी पुलिसकर्मी ने हर दिन मेरे साथ मारपीट की। दिन में मेरे साथ एक महिला सिपाही रहती। मुझे थाने के एक कमरे में रखा। वहीं थाने वाले मारपीट करते।

रात में महिला सिपाही नहीं रही। मैं आज भी डर और सहम जाती हूं। थाने में पुलिस वालों ने मेरे साथ कई बार गलत काम किया। मुझे उनके नाम नहीं पता पर वह थाने का ही स्टाफ था। मेरे ससुर ईसर, सासू शांति देवी, काका ससुर चैनाराम, रिश्तेदार जगदीश ने मारपीट की। जगदीश गौरा एवं चैनाराम ने मेरे साथ ससुराल में गलत काम किया। इन्होंने मेरे ससुराल में ही दो बार ज्यादती की।

यह था मामला

निंबाकाबास नागौर निवासी भींवाराम गायब हो गया था। घरवाले उसकी पत्नी रामप्यारी (बदला नाम) एवं उसके मौसेरे भाई बजरंग लाल और दूर के रिश्तेदार महेश पर भींवाराम की हत्या, अपहरण एवं गहने चुराने का शक जताकर पुलिस थाने ले गए। मुकदमा तक दर्जकर लिया। बिना गिरफ्तारी दिखाए वारदात कबूल करवाने के लिए दोनों को 18 दिसंबर से 7 जनवरी, 2012 तक अवैध रूप से हिरासत में रखा और गंभीर प्रताड़नाएं दी गईं। तभी 7 जनवरी को भींवाराम सकुशल आ गया। उसने मर्जी से सालासर मंदिर जाना बताया।

गृह विभाग के एसीएस सम्पतराम से बात

आयोग की जांच रिपोर्ट में मौलासर थाने में पीड़ित भाई-बहन को अवैध रूप से 22 दिन हिरासत में रखने, वहां मारपीट करने एवं थाने में विवाहिता के साथ पुलिसकर्मियों की ओर से ज्यादती करने का मामला सामने आया है। इस जांच रिपोर्ट पर सरकार क्या कार्रवाई कर रही है?

मानवाधिकार आयोग से मौलासर थाने वाली जांच रिपोर्ट अभी मिली है। ऐसे में अध्ययन करने के बाद सरकार निर्णय लेगी कि क्या कार्रवाई की जानी है।

घटना को इतना समय हो जाने के बाद भी पुलिस महकमे ने अभी तक आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई क्योंनहीं की?

जांच रिपोर्ट अभी मिली है, ऐसे में बिना जांच पूरी हुए कैसे कार्रवाई की जाती। आयोग ने फरवरी में जांच शुरू की थी, अब जाकर रिपोर्ट दी है। ऐसे में वहीं पर देरी हुई है, हमारे स्तर पर नहीं।

थाने गया था, लेकिन ऐसी गंभीर जानकारी में नहीं आई

'एक व्यक्ति17 दिसंबर 2011 को गायब हो गया था। दो दिन बाद एमएलए के नेतृत्व में लोग थाने पर प्रदर्शन करने आए थे। तब कानून एवं व्यवस्था को संभालने के लिए मैं थाने गया था। शक के आधार पर कई लोगों से पूछताछ हुई थी। मेरी जानकारी में यह नहीं आया कि बजरंगलाल एवं उसकी मौसरी बहन को थाने में अवैध हिरासत में रखा गया। थाने में ज्यादती जैसी घटना नहीं हुई। ऐसी गंभीर घटना होती तो अब तक छिपी नहीं रहती। इसमें सुपरविजन को लेकर मेरी कोई लापरवाही नहीं है। मानवाधिकार आयोग की जांच रिपोर्ट में क्या आया है, यह देखा जाएगा।'

-हरिप्रसाद शर्मा, तत्कालीन पुलिस अधीक्षक

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