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18 अगस्त 2012

आखिर किस वजह से और कब आता है हार्ट अटैक, जानिए पूरी हकीकत!




हार्ट अटैक या दिल का दौरा पड़ने की खबरें अक्सर सुनाई पड़ जाती हैं। आपके मन में यह सवाल जरूर उठता होगा कि दिल का दौरा आखिर क्यों पड़ता है और यह भी कि क्या दिल का दौरा पड़ने का कोई लक्षण भी होता है या नहीं?

अगर मिचली या उल्टी आए, माथे पर चिंता की लकीरें उभरें, पसीने-पसीने हो रहे हों, सीने में दर्द या सांस लेने में परेशानी महसूस कर रहे हों या त्वचा का रंग पीला पड़ने लगे तो डॉक्टर की सलाह जरूर लें, क्योंकि यह दिल का दौरा पड़ने का संकेत हो सकता है। ऐसे मामले को हल्के में लेना आपको भारी पड़ सकता है।

दिल का दौरा पड़ने का कोई निश्चित समय नहीं होता। यह कभी भी पड़ सकता है। कभी-कभी तो यह कोई संकेत भी नहीं देता है। इस तरह के दौरे को साइलेंट इस्चीमिया कहा जाता है। इसमें खून का दिल तक पहुंचना बाधित हो जाता है, लेकिन तत्काल कोई परेशानी महसूस नहीं होती।

इसी तरह दिल को जरूरी ऑक्सीजन पहुंचाने वाली कोरोनरी ऑरटरीज जब जरूरत के मुताबिक खून की आपूर्ति नहीं कर पाती हैं तो लोग सीने में दर्द की शिकायत करते हैं, जिसे एंजाइना कहा जाता है। दरअसल, शरीर में खून पहुंचाने के लिए दिल किसीपंप के माफिक काम करता है। और इस पंप को चालू रखने के लिए दिल तक खून पहुंचाने वाली रक्त वाहिका को ही कोरोनरी ऑरटरी कहा जाता है। कुछ लोगों को पता ही नहीं होता कि वे कोरोनरी ऑरटरीज डिजीज (सीएडी) से पीड़ित हैं। सीएडी पीड़ित लोगों को या तो सांस लेने में परेशानी होती है या फिर पैर और टखनों में सूजन आ जाती है। और एक समय ऐसा आता है जब दिल से जुड़ी उनकी ऑरटरी पूरी तरह से काम करना बंद कर देती है और तभी दिल का दौरा पड़ता है।

दिल का दौरा पड़ने की मुख्य वजह हाई ब्लड कोलेस्ट्रॉल, हाई ब्लड प्रेशर, धूम्रपान और मोटापा होता है। अगर आप किसी तरह का शारीरिक श्रम नहीं करते हैं, शरीर को हिलाते-डुलाते नहीं हैं तो भी दिल का दौरा पड़ने की संभावना रहती है। बहुत से लोग अपनी जीवनशैली में बदलाव लाकर और डॉक्टर की सलाह से दवाएं खाकर ठीक हो जाते हैं, लेकिन जो लोग सीएडी से गंभीर रूप से पीड़ित होते हैं, उन्हें एंजियोप्लास्टी या बाईपास सर्जरी की जरूरत होती है।

एंजियोप्लास्टी और स्टेंटिंग: कोरोनरी आरटरी डिजीज अगर गंभीर स्थिति में है, तो सबसे पहले एंजियोप्लास्टी की प्रक्रिया अपनाई जाती है। इसमें दिल तक खून पहुंचाने वाली ब्लड वेसल जिस जगह पर संकरी होती है, वहां तक कैथेटर के जरिए एक बलून कैथेटर पहुंचाया जाता है। इसके बाद एक महीन तार (वायर) के जरिए एंजियोप्लास्टी कैथेटर को थोड़ा हिलाया-डुलाया जाता है, ताकि बलून उस जगह पहुंच जाए, जहां खून की आपूर्ति बाधित हो रही है। फिर बलून को फुलाया जाता है, ताकि ब्लड वेसल की अंदरूनी दीवार को दबाया जा सके। जब अंदरूनी दीवार दब जाती है और खून जाने का रास्ता साफ हो जाता है तब बलून कैथेटर को पिचकाकर शरीर से बाहर निकाल लिया जाता है। आजकल बंद ऑरटरी को खोलने के लिए एंजियोप्लास्टी के दौरान ही ब्लड वेसल में बलून कैथेटर के जरिए स्टेंट भी डाल दिया जाता है। इसमें बलून को फुलाया जाता है ताकि स्टेंट ब्लड वेसल की अंदरूनी दीवार में फिट बैठ जाए। स्टेंट फिट हो जाने पर बलून को पिचकाकर बाहर निकाल लिया जाता है। स्टेंट उसी जगह पर पड़ा रहता है और दिल तक खून पहुंचने का रास्ता एकदम साफ हो जाता है। बाईपास सर्जरी: स्थिति ज्यादा गंभीर होने पर बाईपास सर्जरी की जरूरत पड़ती है। इसके लिए पैर, बांह या सीने में छोटी-सी सर्जरी करके एक स्वस्थ ब्लड वेसल निकाल ली जाती है। फिर ग्रॉफ्टिंग के जरिए उस ब्लड वेसल का इस्तेमाल दिल तक खून पहुंचाने के लिए एक नए रास्ते के तौर पर किया जाता है। एक बार जब नए रास्ते से दिल तक पर्याप्त मात्रा में खून पहुंचने लगता है, तब एंजाइना और हार्ट अटैक का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है। ऐसे मरीजों को लो फैट भोजन करने की सलाह दी जाती है। अगर डॉक्टर ने खाने के लिए कोई दवा बताई है, तो बगैर उसकी सलाह के उसे खाना बंद नहीं करना चाहिए। अगर आपको अपने दांतों के लिए किसी डेंटिस्ट की जरूरत पड़ती है, तो उसे जरूर बताएं कि आप एस्पिरीन, प्लेविक्स या वारफरीन जैसी दवाएं खाते हैं। शराब का सेवन आपके लिए नुकसानदेह हो सकता है, जबकि योग आपके दिल की सेहत के लिए बहुत अच्छा है।

डॉ. दिलीप कुमार, कार्डियोलॉजिस्ट,

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