भारत के झंडा गीत की रचना श्री श्यामलाल गुप्त 'पार्षद' ने की थी । ७ पद वाले इस मूल गीत से बाद में कांग्रेस नें तीन पद (पद संख्या १, ६ व ७) को संशोधित करके ‘झण्डागीत’ के रूप में मान्यता दी। यह गीत न केवल राष्ट्रीय गीत घोषित हुआ बल्कि अनेक नौजवानों और नवयुवतियों के लिये देश पर मर मिटने हेतु प्रेरणा का स्रोत भी बना।
मूल रूप में लिखा झण्डागीत इस प्रकार है:-
- विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झण्डा ऊँचा रहे हमारा।
- सदा शक्ति बरसाने वाला
- वीरों को हरसाने वाला
- प्रेम-सुधा सरसाने वाला
- मातृभूमि का तन-मन सारा, झण्डा ऊँचा रहे हमारा ।१।
- लाल रंग बजरंगबली का
- हरा अहल इस्लाम अली का
- श्वेत सभी धर्मों का टीका
- एक हुआ रंग न्यारा-न्यारा, झण्डा उँचा रहे हमारा ।२।
- है चरखे का चित्र संवारा
- मानो चक्र सुदर्शन प्यारा
- हरे रंग का संकट सारा
- है यह सच्चा भाव हमारा, झण्डा उँचा रहे हमारा ।३।
- स्वतंत्रता के भीषण रण में
- लखकर जोश बढ़े क्षण-क्षण में
- कांपे शत्रु देखकर मन में
- मिट जाये भय संकट सारा, झण्डा ऊँचा रहे हमारा ।४।
- इस झण्डे के नीचे निर्भय
- लें स्वराज्य का अविचल निश्चय
- बोलो भारत माता की जय
- स्वतंत्रता है ध्येय हमारा, झण्डा उँचा रहे हमारा ।५।
- आओ प्यारे वीरो आओ
- देश-धर्म पर बलि-बलि जाओ
- एक साथ सब मिल कर गाओ
- प्यारा भारत देश हमारा, झण्डा उँचा रहे हमारा ।६।
- शान न इसकी जाने पाये
- चाहे जान भले ही जाये
- विश्व विजय कर के दिखलायें
- तब होवे प्रण पूर्ण हमारा, झण्डा उँचा रहे हमारा ।७।
झंडा गीत और उस का इतिहास
"विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा" नामक उक्त सुविख्यात झंडा गीत को 1938 के कांग्रेस अधिवेशन में स्वीकार किया गया था। इस गीत की रचना करने वाले श्यामलाल गुप्त 'पार्षद' कानपुर में नरवल के रहने वाले थे। उनका जन्म 16 सितंबर 1893 में वैश्य परिवार में हुआ था। गरीबी में भी उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की थी। उनमें देशभक्ति का अटूट जज्बा था, जिसे वह प्रायः अपनी ओजस्वी राष्ट्रीय कविताओं में व्यक्त करते थे। कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता रहने के बाद वह 1923 में फतेहपुर के जिला कांग्रेस अध्यक्ष भी बने। वह 'सचिव' नाम का एक अखबार भी निकालते थे। जब यह लगभग तय हो गया था कि अब आजादी मिलने ही वाली है, उस वक्त कांग्रेस ने देश के झंडे का चयन कर लिया था। लेकिन एक अलग “झंडा गीत” की जरूरत महसूस की जा रही थी। गणेश शंकर 'विद्यार्थी', पार्षद जी के काव्य-कौशल के कायल थे। विद्यार्थी जी ने पार्षद जी से झंडा गीत लिखने का अनुरोध किया। पार्षद जी कई दिनों तक कोशिश करते रहे, पर वह संतोषजनक झंडा गीत नहीं लिख पाए। जब विद्यार्थीजी ने पार्षदजी से साफ-साफ कह दिया कि उन्हें हर हाल में कल सुबह तक "झंडा गीत" चाहिए, तो वह रात में कागज-कलम लेकर जम गए।
आधी रात तक उन्होंने झंडे पर एक नया गीत तो लिख डाला , लेकिन वह खुद उन्हें जमा नहीं। निराश हो कर रात दो बजे जब वह सोने के लिए लेटे, अचानक उनके भीतर नए भाव उमड़ने लगे। वह बिस्तर से उठ कर नया गीत लिखने बैठ गए। पार्षद जी को लगा जैसे उनकी कलम अपने आप चल रही हो और 'भारत माता' उन से वह गीत लिखा रही हों। यह गीत था-"विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा।" गीत लिख कर उन्हें बहुत संतोष मिला।
सुबह होते ही पार्षद जी ने यह गीत 'विद्यार्थी' जी को भेज दिया, जो उन्हें बहुत पसंद आया। जब यह गीत महात्मा गांधी के पास गया, तो उन्होंने गीत को छोटा करने की सलाह दी । आखिर में, 1938 में कांग्रेस के अधिवेशन में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने इसे देश के "झंडा गीत" की स्वीकृति दे दी। यह ऐतिहासिक हरिपुरा अधिवेशन था। नेताजी ने झंडारोहण किया और वहां मौजूद करीब पांच हजार लोगों ने श्यामलाल गुप्त पार्षद के रचे झंडा गीत को एक सुर में गाया।
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