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02 अगस्त 2012

आबोहवा हो गई 25 गुना ज्यादा प्रदूषित

कोटा.शहर में वाहनों की बेशुमार तादाद और उद्योगों की चिमनियों से निकलते धुएं समेत अन्य कारणों के चलते आबोहवा में प्रदूषण का धीमा जहर लगातार बढ़ता जा रहा है। वायु प्रदूषण निर्धारित मानकों को पार कर 25 गुना तक ज्यादा बढ़ चुका है। मौसम में बदलाव के साथ ही प्रदूषण के आंकड़े और ज्यादा बढ़ जाते हैं।

वायुमंडल में मौजूद विषैली गैसों की मात्रा के जो मान्य मानक हैं, वे ध्वस्त होकर शहर के कई इलाकों में प्रदूषण की मात्रा 5 हजार मिलिग्राम परमीटर क्यूक तक पहुंच चुकी है। शहर में तीन जगह लगे वायु प्रदूषण मापक यंत्रों से प्रदूषण नियंत्रण मंडल जो हर तीन माह में रिपोर्ट लेता है, उसमें प्रदूषण की मात्रा एक हजार से लेकर 5 हजार मिलिग्राम परमीटर क्यूक तक दर्ज की गई है। खास तौर से गर्मी बढ़ने और आंधी चलने के दौरान वायु प्रदूषण में बड़ा इजाफा हो जाता है।

वायुमंडल में विषैली गैसों की मात्रा के जो मान्य मानक हैं वे अधिकतम 200 मिलीग्राम परमीटर क्यूक तक हैं। आंकड़ा इससे ऊपर जाने का मतलब है जनजीवन पर खतरे की घंटी। जबकि आबोहवा शुद्ध रहने के मानक 80 से 120 मिलीग्राम परमीटर क्यूक तक ही हैं। कोटा के वायुमंडल में मौजूद विषैली गैसों की मात्रा ने रिकॉर्ड तोड़ दिया है।

यही वजह है कि शहर में छितराई बारिश होने के साथ ही वायु प्रदूषण से फैलने वाली बीमारियां बढ़ती जा रही हैं। आसमान में नीर भरे काले बादल नजर आने के बावजूद बारिश नहीं होती। या फिर नयापुरा इलाके में बारिश हो जाती है तो छावनी गुमानपुरा सूखा रह जाता है।

इन स्थानों पर लगे हैं प्रदूषण मापक यंत्र

केंद्र सरकार की योजना के तहत शहर में बारां रोड पर बोरखेड़ा कृषि फार्म, रामपुरा और इंद्रप्रस्थ इंडस्ट्रीज एरिया स्थित राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल कार्यालय के ऊपर प्रदूषण मापक यंत्र लगे हुए हैं।

ये यंत्र शहर को औद्योगिक जोन, आबादी जोन और सेंसेटिव जोन के रूप में विभाजित कर लगाए गए हैं। प्रदूषण नियंत्रण मंडल के प्रभारी राजीव पारीक के मुताबिक इन यंत्रों से हर तीन माह में रिपोर्ट ली जाती है। गर्मी में और आंधी चलने के दौरान वायु प्रदूषण के मानक एक हजार से 5 हजार मिलिग्राम परमीटर क्यूक तक पहुंच जाते हैं।

ये हैं वायु प्रदूषण बढ़ने के कारण

शहर में वर्ष 1984 तक बहुत कम वाहन थे। अब यह संख्या 50 गुना तक बढ़ चुकी है। थर्मल समेत शहर में स्थित उद्योगों की चिमनियों से बेशुमार धुंआ निकलता है। कोयले की राख भी उड़ती है। इन पर नियंत्रण के लिए उद्योगों में जो तकनीकी उपाय किए जाने चाहिए, वे बहुत ही मामूली हैं।

शहर में 25 साल पहले तक जो घने पेड़ थे, उनमें से अधिकांश पेड़ कट गए। बांसों के जंगल जिनका बारिश में अहम योगदान होता है, वे साफ हो चुके हैं। टूटी-फूटी सड़कों के कारण वाहन चालकों को बार-बार वाहन के गियर बदलने पड़ते हैं। इस कारण भी प्रदूषण बढ़ता है।

आम्लिक वर्षा का खतरा

पर्यावरणविद डॉ. लक्ष्मीकांत दाधीच के मुताबिक कोटा के वायुमंडल में विषैली गैसों की मात्रा जिस कदर बढ़ती जा रही है, उससे आम्लिक वर्षा की आशंका पैदा होती जा रही है। लोगों में बेचैनी घुटन और टेंशन की बड़ी वजह प्रदूषण भी है। वायुमंडल में मान्य मानक जब 200 मिलिग्राम परमीटर क्यूक से ऊपर पहुंचते हैं तो आम्लिक वर्षा का खतरा पैदा होने लगता है।

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