भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल ने सांप्रदायिक एकता का हमेशा मिसाल पेश किया है। यहां के लोगों को जाति, धर्म या मजहब के नाम पर कोई अलग नहीं कर सकता। वहीं इंसानियत का एक सच्चा रूप हमें यहां के भिखारियों में देखने को मिलता है।
यहां आपको ऐसे कई भिखारी मिल जाएंगे जो कभी मंदिरों के बाहर तो कभी मस्जिदों के बाहर भीख मांगते हैं। इनकी कहानी अलग ही है। ये अगर मस्जिद की रोटी खाते हैं तो मंदिर का पानी पीते हैं।
एक तरफ रमजान का पाक महीना चल रहा है, तो दूसरी तरफ सावन। इस महीने में हिंदुओं के कई तीज-त्यौहार मनाए जाते है। ऐसे में, इन भिखारियों के पास जो भी अच्छे कपड़े हैं, उसे पहन कर वे भीख मांगने निकल पड़ते हैं।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
30 जुलाई 2012
अजब है इनकी कहानी, मस्जिद की रोटी और मंदिर का पानी
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