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29 जुलाई 2012

यहां लगती है भगवान शिव की अदालत, होती है मुकदमों की सुनवाई!

देवघर. झारखंड के देवघर जिला स्थित द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक बाबा बैद्यनाथ धाम में जो कांवडिये जलाभिषेक करने पहुंचते हैं, वे बासुकीनाथ मंदिर में जलाभिषेक करना नहीं भूलते।


क्या है मान्यता ?

लोगों की ऐसी मान्यता है कि बाबा बैद्यनाथ के दरबार में यदि दीवानी मुकदमों की सुनवाई होती है तो बासुकीनाथ में फौजदारी मुकदमे की सुनवाई होती है। जब तक बासुकीनाथ मंदिर में जलाभिषेक नहीं किया जाता तब तक बाबा बैद्यानाथ धाम की पूजा अधूरी मानी जाती है।
बासुकीनाथ मंदिर, बाबा बैद्यनाथ धाम से करीब 42 किलोमीटर दूर झारखंड के दुमका जिले में है। बाबा बैद्यनाथ मंदिर स्थित कामना लिंग पर जलाभिषेक करने जाने वाले कांवडिये अपनी पूजा पूर्ण करने के लिए नागेश ज्योतिर्लिग के नाम से विख्यात बासुकीनाथ मंदिर में जलाभिषेक करना नहीं भूलते।

पैदल ही होती है बासुकीनाथ धाम की यात्रा

कांवडिये अपने कांवड़ में सुल्तानगंज की उत्तरवाहिनी गंगा नदी से जिन दो पात्रों में जल लाते हैं, उनमें से एक का जल बाबा बैद्यनाथ में चढ़ाया जाता है, जबकि दूसरे का बाबा बासुकीनाथ में। देवघर कामना लिंग में जलाभिषेक के बाद कई कांवडिये पैदल ही बासुकीनाथ धाम की यात्रा करते हैं, लेकिन अधिकतर कांवडिये वाहनों से यहां तक की यात्रा करते हैं। भक्तों को विश्वास है कि बाबा बासुकीनाथ के दरबार में मांगी गई मुराद अवश्य व तुरंत पूरी होती है।

कहा जाता है कि प्राचीन काल में बासुकीनाथ घने वनों से आच्छादित क्षेत्र था, जिसे उन दिनों दारूक वन क्षेत्र कहा जाता था। पौराणिक कथा के अनुसार, इसी वन में नागेश्वर ज्योतिर्लिग का निवास था। शिव पुराण में मिले वर्णन के अनुसार यह दारूक वन दारूक नाम के राक्षस के अधीन था। माना जाता है कि दुमका का नाम भी इसी दारूक वन से पड़ा है।

है दिलचस्प कहानी

किंदवंतियों के मुताबिक, एक बार बासु नाम का एक व्यक्ति कंद की खोज में भूमि खोद रहा था। इस दौरान बासु का औजार भूमि में दबे शिवलिंग से टकरा गया और वहां से दूध बहने लगा। बासु यह देखकर भयभीत हो गया और भागने लगा। उसी वक्त एक आकाशवाणी हुई, ''भागो मत, यह मेरा निवास स्थान है। तुम पूजा करो।'' आकाशवाणी के बाद बासु वहां पूजा-अर्चना करने लगा और तभी से शिवलिंग की पूजा होने लगी जो अब भी जारी है।

बासु के नाम पर इस स्थल का नाम बासुकीनाथ पड़ गया। आज यहां भगवान भोले शंकर और माता पार्वती का विशाल मंदिर है। मुख्य मंदिर के नजदीक शिव गंगा है, जहां भक्त स्नान कर अपने आराध्य को बेल पत्र, पुष्प और गंगाजल समर्पित करते हैं तथा अपने कष्ट क्लेश दूर करने की प्रार्थना करते हैं।


बासुकीनाथ मंदिर के पुजारी सदाशिव पंडा ने बताया कि बासुकीनाथ में शिव का रूप नागेश का है। यहां पूजा में अन्य सामग्रियां तो चढ़ाई ही जाती हैं, लेकिन दूध से पूजा करने का काफी महत्व है। मान्यता है कि नागेश रूप के कारण दूध से पूजा करने से भगवान शिव खुश रहते हैं।


उन्होंने बताया कि यहां वर्ष में एक बार महारूद्राभिषेक का आयोजन किया जाता है। जिसमें काफी मात्रा में दूध चढ़ाया जाता है। उस दिन यहां दूध की नदी सी बह जाती है। रूद्राभिषेक में घी, मधु तथा दही का भी प्रयोग किया जाता है। इस अनुष्ठान के समय भक्तों की भारी भीड़ एकत्र होती है।
उन्होंने कहा, ''यूं तो वर्ष भर बासुकीनाथ मंदिर में श्रद्घालुओं का तांता लगा रहता है, परंतु सावन में यहां श्रद्घालुओं की भारी भीड़ इकट्ठा हो जाती है।''

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