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26 जुलाई 2012

लाशों पर जारी है शर्मनाक धंधा, कहां गई इंसान की संवेदना


नागपुर। इंसान की संवेदनशीलता इस कदर खत्म होती जा रही है कि वो लाश पर भी सौदेबाजी करने से नहीं परहेज कर रहा।

यह नजारा मेडिकल और मेयो अस्पताल के शव विच्छेदन गृहों में देखा जा सकता है। यहां शव के साथ वस्तु जैसा व्यवहार किया जाता है। शव विच्छेदन के पहले या बाद में परिजनों की भावनाएं आहत हो रही हैं, फिर भी मौन रह कर सहन करना पड़ रहा है।

पैसे देना मजबूरी

मेडिकल शासकीय अस्पताल हो या इंदिरा गांधी शासकीय अस्पताल, दोनों सरकारी अस्पतालों में शव को वस्तु की तरह ही समझा जाता है। यहां पोस्टमार्टम के लिए आने वाली लाशें शव विच्छेदन गृह के कर्मचारियों के लिए ऊपर की कमाई का जरिया बन गई हैं।

बिना पैसे लिए जल्दी हाथ लगाने को तैयार नहीं होते। रात में शव को फ्रीजर में रखना हो, शव विच्छेदन कराना हो, शव को नहलाना हो या जल्दी शव लेना हो तो कर्मचारियों का ध्यान सिर्फ पैसे वसूलने पर होता है।

परिजन याचक के रूप में खड़े रहते हैं। जेब ढीली करने के सिवा और कोई चारा नहीं। मेडिकल व मेयो में महीने भर में करीब 200 से 250 शव पोस्टमार्टम के लिए आते हैं।

रात में बढ़ जाती है परेशानी

जानकारी के अनुसार, शव विच्छेदन के लिए आए शव को धार्मिक रीति-रिवाजों के तहत जाकर नहलाना मुमकिन नहीं होता है, ऐसे में शव को नहलाने के नाम पर 200 से 500 रुपये तक की वसूली होती है।

मृत देह के लिए जरूरी सफेद कफन, निलगिरी का तेल व कपास अस्पताल से न देकर बाहर से मंगाया जा रहा है, जबकि नियमानुसार इसे अस्पताल से ही दिया जाना चाहिए।

रात में किसी का देहांत हो जाए और उसे शीतगृह में रखना हो, तो चौकीदार 300 से 500 रुपये ले लेता है। जल्दी के नाम पर भी पैसे लेना तो आम बात है। शव के प्रति कोई संवेदना नहीं। शवगृह में कार्यरत लोगों के लिए यह किसी वस्तु जैसा ही होता है।

शव के नाम पर लेन-देन और उसके रख-रखाव में गैरजिम्मेदारी के प्रति न तो अस्पताल प्रशासन ध्यान देता है और न ही सामाजिक संगठना इस ओर कोई कदम उठाते हैं।

निजी एंबुलेंस व ऑटोरिक्शा का बोल बाला

शव विच्छेदन विभाग में कार्यरत कर्मचारियों ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि शव विच्छेदन विभाग के आस-पास निजी एंबुलेंस खड़ी रहती हैं, जो परिजनों से 5 से 8 किलोमीटर तक की दूरी के लिए भी करीब 800 रुपये लेती हैं, वहीं 50 से 100 किलोमीटर दूर जाना हो तो शुल्क 1200 से 1500 हो जाता है।

सरकारी नियमानुसार प्रति किलोमीटर के हिसाब से 8 रुपये ही लिए जाने चाहिए। सरकारी अस्पताल के परिसर में निजी ऑटोरिक्शा चालकों का जमावड़ा रहता है। वे बेझिझक यहां अपना धंधा कर रहे हैं। यहां तक की शोकाकुल परिवार से विवाद करने से भी नहीं हिचकते।

शव को घर तक पहुंचाने के लिए वे भी निजी एंबुलेंस की तरह ही मृतक के परिजनों से पैसे वसूलते हैं। यह सब पुलिस की आंखों के सामने होता है, लेकिन पुलिस भी इसे रोकने के लिए कुछ नहीं करती। सरकारी अस्पताल में अधिकतर निर्धन व दूर-दराज के इलाकों से लोग आते हैं। उनके लिए यह रकम बहुत ज्यादा हो जाती है

परिजन शवागार ले जाते हैं शव

मेडिकल चौक निवासी सुयोग कडू ने बताया कि मेडिकल में मेरा अक्सर आना-जाना होता है। मैं हमेशा देखता हूं कि मृत देह को ले जाने के लिए स्ट्रेचर नहीं होते हैं, परिजन स्वयं शव को शव विच्छेदन गृह तक ले जाते हैं।

अस्पताल का कोई कर्मचारी सहायता भी नहीं करता है। जब भी शव को शवगृह तक ले जाने के लिए स्ट्रेचर का उपयोग किया जाता है, उसके बाद उसकी सफाई नहीं की जाती है।

बैठक की सुविधा नही

दोनों भी सरकारी अस्पताल में शव विच्छेदन केंद्र के बाहर परिजनों के बैठने के लिए कोई विशेष इंतजाम नहीं किए गए हैं। न पानी की सुविधा है और न ही शौचालयों की। गंदगी की तो भरमार रहती है। मेडिकल में बनी बैठक में तो कुत्ते, मवेशी आदि बैठे हुए दिखाई देते हैं।


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