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11 जुलाई 2012

किस जगह पिया था भगवान शिव ने विष? जानिए..




भारत में तमिलनाडु राज्य के कुम्भकोणम के उत्तर में 7 किमी की दूरी पर नीदमंगलम के पास अलानगुड़ी में स्थित है - श्री अभत्स्येश्वर मंदिर। यह स्थान भगवान शिव को समर्पित है। यहां देवगुरु बृहस्पति शिवलिंग स्वरूप में पूजनीय हैं। इसलिए यह देवालय देवगुरु बृहस्पति के स्थान के रूप में भी प्रसिद्ध है। यह मंदिर शिवालय होने के साथ तमिलनाडु के चोल क्षेत्र के नवग्रह स्थलों में से एक है। यहां भगवान शिव के दक्षिणामूर्ति स्वरूप के दर्शन होते हैं। यहां बृहस्पति के अपनी राशियों में संक्रमण के समय दर्शन व गुरु दोष शांति के लिए बड़ी तादाद में श्रद्धालु आते हैं। कई पौराणिक मान्यताएं जुड़ी होने से यह स्थान बड़ा ही जाग्रत भी माना गया है।



क्या है पौराणिक महत्व?



पौराणिक मान्यताओं में यह वही स्थान है जहां भगवान शिव ने समुद्र मंथन में निकले भयंकर विष को पीकर जगत की रक्षा की और नीलकंठ बने। अलानगुड़ी शब्द में भी 'अला' का मतलब जहर ही बताया गया है। इसलिए यहां भगवान शिव नीलकंठ रूप में विराजित हैं। यही नहीं, माता सती का पुनर्जन्म भी यहां अमृत पुष्करिणी के किनारे ही माना जाता है। इसी जन्म में भगवान शिव से उनका फिर से मिलन हुआ। माना जाता है कि यहीं गुरु बृहस्पति ने तप कर भगवान शिव की कृपा से देवगुरु का पद पाया। भगवान आदि शंकराचार्य ने भी शिव के इस क्षेत्र में आकर तप किया।



ज्योतिष विज्ञान की नजर में देवगुरु बृहस्पति -



हिन्दू धर्म में देवगुरु यानी बृहस्पति को विद्या और ज्ञान के देवता के रुप में पूजा जाता है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार गुरु व्यक्ति के भाग्य का भी निर्णय करने वाले हैं। बृहस्पति का वाहन हाथी माना जाता है, जो स्वयं एक बुद्धिमान जीव माना गया है। कुण्डली का दूसरा, चौथा, पांचवा और ग्यारहवां स्थान गुरु का विशेष प्रभाव क्षेत्र होता है। ज्योतिष शास्त्रों में कहा गया है कि गुरु, मीन और धनु राशि के स्वामी हैं। यह मकर राशि में होने पर जातक पर बुरा प्रभाव डालते हैं, वहीं कर्क राशि में होने पर यह सुफल देते हैं। इसके अलावा गुरु को पूर्व दिशा का स्वामी माना गया है। साथ ही वह पीले रंग, पीले पुखराज, स्वर्ण धातु के स्वामी होने के साथ ही पुरुष और आकाश तत्व के कारक माने जाते हैं। गुरु के बुरे प्रभाव से डायबिटीज, लीवर या वायु से जुड़े रोग हो जाते हैं। हवाई दुर्घटना की भी संभावना बनती है। गुरु का अच्छा-बुरा प्रभाव कारोबार, शिक्षा और अदालती मामलों में सफलता और असफलता नियत करता है। गुरु के शुभ प्रभाव से जातक का स्वभाव विनम्र और शांतिप्रिय होता है, वह खूबसूरत होता है और उसका रुझान धर्म और अध्यात्म क्षेत्र में होता है।



मंदिर का स्वरूप -



मंदिर क्षेत्र में 15 तीर्थ हैं, जो लगभग 1.25 एकड़ क्षेत्र में फैले हैं। इसके अलावा मंदिर के अंदर ही ज्ञान कूप नाम का एक तीर्थ भी है। मंदिर के पूर्व दिशा की ओर पुल्लैवला नदी बहती है, जिसके जल से भगवान का अभिषेक किया जाता है। भगवान शिव और गुरु के मंदिर के अलावा यहां सूर्य, सोम, ब्रह्मा, विष्णु, गुरुमोक्षेश्वर, सप्तऋषि, काशी विश्वनाथ, विशालाक्षी आदि देवी-देवताओं के मंदिर भी स्थित है। इस मंदिर का निर्माण काल पल्लवकालीन माना जाता है। किंतु चोल शासकों ने इसमें नए निर्माण किए। चोल वंश के एक अभिलेख में इस स्थान को सरुपेदिमंगलम नाम से पुकारा गया है।

मूर्ति -



यहां बृहस्पति देव की चार भुजाधारी मूर्ति है। जिनमें एक हाथ में दण्ड, दूसरे में कमण्डल, तीसरे में जपमाला और चौथा हाथ आशीर्वाद देने की मुद्रा में है। बृहस्पति देव यहां तपस्वी की वेशभूषा में विराजित हैं।



कैसे पहुंचे -



एयरपोर्ट - नजदीकी एयरपोर्ट तिरुचिरापल्ली, चेन्नई और पांडिचेरी है।

रेलवे स्टेशन - नजदीकी रेलवे स्टेशन कुंभकोणम, कांचीपुरम, श्री रंगम और तंजावुर हैं।

सड़क मार्ग - अलानगुड़ी सड़क मार्ग से चेन्नई से लगभग 370 किलोमीटर और तिरुचिरापल्ली से लगभग 70 किलोमीटर दूर स्थित है।

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