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09 जुलाई 2012

खुद के नियम बनाकर बांट दिया 21 लाख का पेट्रोल

कोटा. नगर निगम में 70 से अधिक कर्मचारी व अभियंता वाहन भत्ते के नाम पर हर माह 25-25 लीटर पेट्रोल लेकर निगम खजाने को खाली कर रहे हैं। पिछले कई सालों से चल रहे इस भत्ते के लिए न तो सरकार से स्वीकृति ली गई, न ही निगम एक्ट में कोई प्रावधान है।

केवल बोर्ड की बैठक में यह फैसला किया और उसे लागू कर दिया। गत दो सालों में ही इससे निगम को 21 लाख रुपए का चूना लग चुका है। उधर, भास्कर ने पड़ताल की तो निकला कि निगम के अधिकारी-कर्मचारी एक लीटर पेट्रोल भरवाने के बावजूद एक दिन में 15-20 किलोमीटर से ज्यादा कोई नहीं घूमता।


इस वाहन भत्ते में सीएसआई, एसआई, राजस्व विभाग के कर्मचारी, गोशाला में काम करने वाले कर्मचारी भी शामिल हैं। इनको मिल रही यह सुविधा देखकर वर्ष-09 में तकनीकी विभाग के अभियंताओं ने भी इस सुविधा के आदेश करा लिए। उन्होंने पहले इसे बोर्ड की बैठक में पारित कराया, इसके बाद तत्कालीन महापौर मोहन लाल महावर से यू नोट लिखाकर यह सुविधा शुरू करा ली। तत्कालीन सीईओ ने 7 अक्टूबर-09 को इसके आदेश जारी किए। इसके आधार पर अब तकनीकी विभाग के 3 एईएन व 9 जेईएन भी यह लाभ उठा रहे हैं।

गैराज प्रभारी तो और आगे निकले

निगम गैराज प्रभारी एक्सईएन मोहन लाल चोकनीवाल तो इससे भी आगे निकले। निगम की ओर से दी गई मोटरसाइकिल आर.जे-20-7350 का तो उपयोग करते रहे। साथ ही अनुबंध कार आर.जे.-20-0909 का भी उपयोग करते रहे। उन्होंने दोनों वाहनों का लाभ उठाया।

1 लीटर पेट्रोल, घूमते हैं 15 किलोमीटर

निगम के तकनीकी अभियंता व कर्मचारी निगम से एक लीटर पेट्रोल तो लेते हैं, लेकिन घूमते मात्र 15 से 20 किलोमीटर ही हैं। सफाई बेड़े में शामिल सीएसआई, एसआई व अन्य कर्मचारियों की भी यही हालत है। जमादार अवश्य वार्ड में दिखाई देते हैं, जबकि इंसपेक्टर कभी-कभी ही दिखाई देते हैं। यही हाल एईएन व जेईएन का है। एईएन सुभाष अग्रवाल ने माना कि रोजाना 15 से 20 किलोमीटर तो जाना ही पड़ता है, वहीं अशोक गोयल रोजाना 25 से 30 किलोमीटर साइड पर आना-जाना बताते हैं। एईएन प्रेमशंकर शर्मा ऐसे एईएन हैं, जो यह सुविधा नहीं लेकर सरकार की ओर से मिलने वाला भत्ता ही लेते हैं।

स्थानीय निधि अंकेक्षण विभाग की ओर से इन दिनों निगम के कार्यो की आडिट की जा रही है। इसमें ही कर्मचारियों व अभियंताओं को अलाउंस के नाम पर पेट्रोल देने का खुलासा हुआ है। विभाग की टीम ने माना कि पेट्रोल देने के लिए न तो निगम एक्ट में प्रावधान है न ही सरकार ने इसके आदेश दिए हैं। केवल बोर्ड की बैठक व महापौर के आदेश पर यह व्यवस्था की गई है। इससे दो साल में ही निगम को 21 लाख रुपए का चूना लगा है।

पेट्रोल देने का फैसला काफी पुराना है। इसकी सरकार से अनुमति नहीं है, मुझे जानकारी नहीं है। बोर्ड की मोहर इस पर लगी हुई है। यदि बिना सरकार की अनुमति से इसे दिया जा रहा है तो बंद कर दिया जाएगा। जिन्होंने भत्ते से अधिक पेट्रोल उठा लिया, उनसे वसूली की जाएगी।

-दिनेश चंद्र जैन, सीईओ निगम

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