कूदन से.देश के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले मेजर सुरेंद्र बढासरा का शव का कूदन पहुंचते ही हर आंख भर आई। उनकी बहादुरी के किस्से रह रह कर याद आ रहे थे। बेटे की मौत से बेखबर मां सोहनी देवी व बहन सुभिता को लाडले के बारे में बताने के लिए किसी के भी कदम आगे नहीं बढ़ पा रहे थे।
दोपहर बाद चार बजे कुछ महिलाएं जब मां और बहन को मेजर सुरेंद्र की शहादत की खबर देने पहुंची तो वे खुद अपने आप को रोक नहीं पाई और फफक पड़ी। कुछ ही समय में घर पर हजारों लोग इकट्ठा हो गए। करीब सवा पांच बजे जैसे ही मेजर सुरेंद्र का शव लेकर सेना की गाड़ी पहुंची तो उनकी शहादत के जयकारे लगे। पत्नी मेजर निशा भी शव के साथ पहुंचीं। वे बिना किसी से कुछ बोले स्तब्ध खड़ी थी।
कर्नल रविंद्र नरवाल की पत्नी सूरज नरवाल ने उन्हें संभाला तो वे उनसे लिपट गई। शब्द खामोश थे और आंखों में मेजर पति की शहादत का गर्व। छोटा भाई नरेंद्र भी खुद को नहीं रोक पाया। रिटायर्ड सूबेदार पिता केशर सिंह दिल पत्थर रख कर परिजनों को भी संभाल रहे थे। सिंह की अंतिम यात्रा में कूदन के साथ आस पास के गांवों के लोग उमड़े।
अर्थी उठी तो मेजर पत्नी को कमरे में ले गए
तिरंगे में लिपटे शव को अर्थी पर रखकर जैसे ही रवाना हुए तो मेजर सुरेंद्र की पत्नी निशा को कमरे में ले गए। इससे पहले वह शव की तरफ देखती तो दूसरे ही पल आंखों पर हाथ रख लेतीं। कर्नल रविंद्र नरवाल भी इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाए कि वे ढांढस बंधाने के लिए कुछ बोल सके। केवल सिर पर ही हाथ रख पाए।
शहादत पर गर्व, बेटा खोने का गम
केशर सिंह को अपने बेटे सुरेंद्र की शहादत पर गर्व है। वे कहते हैं, मेरे बेटे ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए हैं। बस इस बात का गम है, बेटा सदा के लिए जुदा हो गया। उन्होंने बताया, दिल्ली में इलाज के दौरान बीच में हालत मे कुछ सुधार भी हुआ था लेकिन होनी को कौन टाल सकता है।
समाचार मिला तो दौड़ा आया बाबू
मेजर सिंह के साथ एक साल पटियाला में 46 आर्मड में बतौर बाबू काम कर चुके गोमावाली के कुंभाराम ने जैसे ही सुबह अखबार में उनके शहीद होने का समाचार पढ़ा तो वे गांव दौड़े आए। रिटायर हो चुके कुंभाराम के अनुसार वे निर्णय लेने में देरी नहीं करते थे।
इन्होंने किए पार्थिव देह पर पुष्पचक्र अर्पित
शहीद की पार्थिव देह पर केंद्र सरकार की ओर से केंद्रीय जनजाति राज्य विकास मंत्री महादेव सिंह खंडेला, प्रदेश सरकार की ओर से आपदा प्रबंधन एवं सैनिक कल्याण राज्य मंत्री बृजेंद्र सिंह ओला ने पार्थिव देह पर पुष्पचक्र अर्पित किए। इनके अलावा जिला प्रमुख रीटा सिंह, धोद विधायक पेमाराम, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुभाष महरिया, पूर्व विधायक केडी बाबर, कलेक्टर धर्मेंद्र भटनागर, कर्नल रविंद्र नरवाल, मेजर सलीम पठान, रणजीत सिंह व चिराग पनवार, एएसपी शरद चौधरी, एसडीएम बनवारी लाल बासनीवाल, तहसीलदार जयसिंह शेखावत, जयपुर सैनिक कल्याण अधिकारी कर्नल राजेश भूकर, जिला सैनिक कल्याण अधिकारी मेजर जी सुखराम, भाजपा जिलाध्यक्ष हरिराम रणवां, जिला परिषद सदस्य ताराचंद धायल, सेना के साथी राकेश सिंह व शहीद के परिजनों ने पुष्पचक्र एवं पुष्प मालाएं अर्पित की।
खामोशी, गर्व और यादें :खुद ठीक करने लग जाते थे टैंक
46 आर्मड से आई टुकड़ी में शामिल सूबेदार सोहनलाल व अर्जुन सिंह ने बताया कि मेजर सुरेंद्र उनकी बटालियन में चार साल रहे। एनएसजी कमांडों की स्पेशल ट्रेनिंग के बाद उन्होंने खुद 4 पैरा स्पेशल फोर्स चुनी, जो आतंकवादियों के खात्मे के लिए जम्मू कश्मीर में अभियान चलाती है। वे हर क्षेत्र की जानकारी रखते थे। टैंक में गड़बड़ी आती तो वे खुद उसे देखने लग जाते थे।
क्च पोलो के खिलाड़ी थे मेजर
मेजर सुरेंद्र पोलो के खिलाड़ी थे। वे आर्मी सपोर्टेड जारा टीम की ओर से खेलते थे। अच्छे घुड़सवार थे। उनके साथ अहमद नगर में कोर्स करने वाले खीरवा निवास मेजर सलीम पठान कहते हैं कि मेजर सुरेंद्र में जोश था। घुड़सवारी किया करते थे। वे हर क्षेत्र में महारथ हासिल करना चाहते थे।
सैनिकों का गांव है कूदन
कूदन गांव में 100 से ज्यादा सैनिक हैं। छह फौजी ऑफिसर हैं। इनमें चार पायलेट हैं। मेजर सुरेंद्र कूदन के पहले शहीद हैं। ग्रामीण कहते हैं कि यहां 1937 में सात लोगों ने देश की आजादी के लिए संघर्ष करते हुए वीर गति प्राप्त की थी।
कश्मीर में पोशाक बदलकर रहते थे
गांव के ही रहने वाले पायलेट धर्मेंद्र सुंडा से मेजर सुरेंद्र वीडियो चेट किया करते थे। वे वहां पर दाढ़ी व बाल बढ़े हुए रखते थे। पायलेट सुंडा ने बताया, आतंकवादियों के खिलाफ अभियान चलाने पर मेजर सुरेंद्र पोशाक बदलकर ही रहते थे।
सुरेंद्र के नाम होगा स्कूल का नामकरण
गांव कूदन के सरपंच जगदीश महरिया ने बताया कि गांव की सरकारी स्कूल का नामकरण शहीद मेजर सुरेंद्र सिंह के नाम से कराया जाएगा। इसके लिए प्रस्ताव भेजा जाएगा।
आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन
मेजर के साथी नरेश सिंह ने बताया कि तीन मई को जम्मू कश्मीर के कूपवाड़ा सेक्टर में आतंकियों के छुपे होने की सूचना मिली थी। इस पर मेजर सुरेंद्र सिंह ने बिना देरी किए वहां पर आतंकियों के विरुद्ध ऑपरेशन शुरू कर दिया। ऑपरेशन के दौरान मेजर ने छह आतंकवादियों को मार गिराया। एक आतंकी द्वारा चलाई गई एके 47 की गोली उनके गुर्दे पर लगी
दोपहर बाद चार बजे कुछ महिलाएं जब मां और बहन को मेजर सुरेंद्र की शहादत की खबर देने पहुंची तो वे खुद अपने आप को रोक नहीं पाई और फफक पड़ी। कुछ ही समय में घर पर हजारों लोग इकट्ठा हो गए। करीब सवा पांच बजे जैसे ही मेजर सुरेंद्र का शव लेकर सेना की गाड़ी पहुंची तो उनकी शहादत के जयकारे लगे। पत्नी मेजर निशा भी शव के साथ पहुंचीं। वे बिना किसी से कुछ बोले स्तब्ध खड़ी थी।
कर्नल रविंद्र नरवाल की पत्नी सूरज नरवाल ने उन्हें संभाला तो वे उनसे लिपट गई। शब्द खामोश थे और आंखों में मेजर पति की शहादत का गर्व। छोटा भाई नरेंद्र भी खुद को नहीं रोक पाया। रिटायर्ड सूबेदार पिता केशर सिंह दिल पत्थर रख कर परिजनों को भी संभाल रहे थे। सिंह की अंतिम यात्रा में कूदन के साथ आस पास के गांवों के लोग उमड़े।
अर्थी उठी तो मेजर पत्नी को कमरे में ले गए
तिरंगे में लिपटे शव को अर्थी पर रखकर जैसे ही रवाना हुए तो मेजर सुरेंद्र की पत्नी निशा को कमरे में ले गए। इससे पहले वह शव की तरफ देखती तो दूसरे ही पल आंखों पर हाथ रख लेतीं। कर्नल रविंद्र नरवाल भी इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाए कि वे ढांढस बंधाने के लिए कुछ बोल सके। केवल सिर पर ही हाथ रख पाए।
शहादत पर गर्व, बेटा खोने का गम
केशर सिंह को अपने बेटे सुरेंद्र की शहादत पर गर्व है। वे कहते हैं, मेरे बेटे ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए हैं। बस इस बात का गम है, बेटा सदा के लिए जुदा हो गया। उन्होंने बताया, दिल्ली में इलाज के दौरान बीच में हालत मे कुछ सुधार भी हुआ था लेकिन होनी को कौन टाल सकता है।
समाचार मिला तो दौड़ा आया बाबू
मेजर सिंह के साथ एक साल पटियाला में 46 आर्मड में बतौर बाबू काम कर चुके गोमावाली के कुंभाराम ने जैसे ही सुबह अखबार में उनके शहीद होने का समाचार पढ़ा तो वे गांव दौड़े आए। रिटायर हो चुके कुंभाराम के अनुसार वे निर्णय लेने में देरी नहीं करते थे।
इन्होंने किए पार्थिव देह पर पुष्पचक्र अर्पित
शहीद की पार्थिव देह पर केंद्र सरकार की ओर से केंद्रीय जनजाति राज्य विकास मंत्री महादेव सिंह खंडेला, प्रदेश सरकार की ओर से आपदा प्रबंधन एवं सैनिक कल्याण राज्य मंत्री बृजेंद्र सिंह ओला ने पार्थिव देह पर पुष्पचक्र अर्पित किए। इनके अलावा जिला प्रमुख रीटा सिंह, धोद विधायक पेमाराम, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुभाष महरिया, पूर्व विधायक केडी बाबर, कलेक्टर धर्मेंद्र भटनागर, कर्नल रविंद्र नरवाल, मेजर सलीम पठान, रणजीत सिंह व चिराग पनवार, एएसपी शरद चौधरी, एसडीएम बनवारी लाल बासनीवाल, तहसीलदार जयसिंह शेखावत, जयपुर सैनिक कल्याण अधिकारी कर्नल राजेश भूकर, जिला सैनिक कल्याण अधिकारी मेजर जी सुखराम, भाजपा जिलाध्यक्ष हरिराम रणवां, जिला परिषद सदस्य ताराचंद धायल, सेना के साथी राकेश सिंह व शहीद के परिजनों ने पुष्पचक्र एवं पुष्प मालाएं अर्पित की।
खामोशी, गर्व और यादें :खुद ठीक करने लग जाते थे टैंक
46 आर्मड से आई टुकड़ी में शामिल सूबेदार सोहनलाल व अर्जुन सिंह ने बताया कि मेजर सुरेंद्र उनकी बटालियन में चार साल रहे। एनएसजी कमांडों की स्पेशल ट्रेनिंग के बाद उन्होंने खुद 4 पैरा स्पेशल फोर्स चुनी, जो आतंकवादियों के खात्मे के लिए जम्मू कश्मीर में अभियान चलाती है। वे हर क्षेत्र की जानकारी रखते थे। टैंक में गड़बड़ी आती तो वे खुद उसे देखने लग जाते थे।
क्च पोलो के खिलाड़ी थे मेजर
मेजर सुरेंद्र पोलो के खिलाड़ी थे। वे आर्मी सपोर्टेड जारा टीम की ओर से खेलते थे। अच्छे घुड़सवार थे। उनके साथ अहमद नगर में कोर्स करने वाले खीरवा निवास मेजर सलीम पठान कहते हैं कि मेजर सुरेंद्र में जोश था। घुड़सवारी किया करते थे। वे हर क्षेत्र में महारथ हासिल करना चाहते थे।
सैनिकों का गांव है कूदन
कूदन गांव में 100 से ज्यादा सैनिक हैं। छह फौजी ऑफिसर हैं। इनमें चार पायलेट हैं। मेजर सुरेंद्र कूदन के पहले शहीद हैं। ग्रामीण कहते हैं कि यहां 1937 में सात लोगों ने देश की आजादी के लिए संघर्ष करते हुए वीर गति प्राप्त की थी।
कश्मीर में पोशाक बदलकर रहते थे
गांव के ही रहने वाले पायलेट धर्मेंद्र सुंडा से मेजर सुरेंद्र वीडियो चेट किया करते थे। वे वहां पर दाढ़ी व बाल बढ़े हुए रखते थे। पायलेट सुंडा ने बताया, आतंकवादियों के खिलाफ अभियान चलाने पर मेजर सुरेंद्र पोशाक बदलकर ही रहते थे।
सुरेंद्र के नाम होगा स्कूल का नामकरण
गांव कूदन के सरपंच जगदीश महरिया ने बताया कि गांव की सरकारी स्कूल का नामकरण शहीद मेजर सुरेंद्र सिंह के नाम से कराया जाएगा। इसके लिए प्रस्ताव भेजा जाएगा।
आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन
मेजर के साथी नरेश सिंह ने बताया कि तीन मई को जम्मू कश्मीर के कूपवाड़ा सेक्टर में आतंकियों के छुपे होने की सूचना मिली थी। इस पर मेजर सुरेंद्र सिंह ने बिना देरी किए वहां पर आतंकियों के विरुद्ध ऑपरेशन शुरू कर दिया। ऑपरेशन के दौरान मेजर ने छह आतंकवादियों को मार गिराया। एक आतंकी द्वारा चलाई गई एके 47 की गोली उनके गुर्दे पर लगी