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19 जून 2012

काश अदालतों के आदेश के अवमानना मामले में सजा देने की जागरूकता हमारे देश में भी आजाये तो बात बन जाए

दोस्तों दहशतगर्दी और गद्दारी के लियें मशहूर पाकिस्तान में आज भी न्याय के अलमबरदार है यह बात आज गिलानी के मामले में सुप्रीम कोर्ट पाकिस्तान के फेसले ने साबित कर दी है और इस फेसले के बाद भारतीय न्यायव्यवस्था की मजबूती और स्वायत्त पर सवाल उठने लगे है ................जी हाँ दोस्तों पाकिस्तान की सुप्रीमकोर्ट जिसने प्रधानमन्त्री को सजा देकर उसे पद मुक्त कर दिया लेकिन हमारी सुप्रीमकोर्ट के आदेशों की पालना हम और हमारी सुप्रीम कोर्ट क्र्वापाने में कामयाब नहीं हो पा रही है ..सभी लोग जानते है के सुप्रीमकोर्ट और दूसरी हैकोर्ट्स के एक हजार से भी ऐसे फेसले है जिसे सरकार ने उपेक्षित रख रखा है ...हाल ही में काले धन की सूचि सुप्रीमकोर्ट में पेश करने के मामले में तो केंद्र सरकार ने कई भार नज़र अंदाज़ किया है ..अनेकों बार सुप्रीमकोर्ट ने आदेश दिए लेकिन ठंडे बसते में गए है .....गिरफ्तारी के वक्त व्यक्ति के अधिकार का मामला हो थानों में एफ आई आर दर्ज करवाने का मामला हो जेलों में सुविधाएं दिलवाने का मामला हो शांतिभंग मामले में नाजायज़ गिरफ्तारी का मामला हो सभी में क्न्तेम्त और कोर्ट हो रहा है लेकिन यहाँ पाकिस्तान जेसी न्यायिक मजबूती नहीं होने से अवमानना के दोषी खुलेआम घूम रहे है ..हमारे देश में उत्तरप्रदेश बाबरी मामले में सुप्रीमकोर्ट के आदेशों की अवहेलना मामले में लाकृष्ण अडवानी ...उमा भारती ....कल्याण सिंह सहित कई ऐसे आरोपी थे जिन्हें दोषी तो माना गया लेकिन सजा के नाम पर केवल प्रतीकात्मक सज़ा दी गयी और न्यायालय की अवमानना करने वालों को फिर से चुनाव लड़ने और देश के महत्वपूर्ण पदों पर बेठने की इजाज़त मिलने से वोह इन पदों पर बेठे रहे ...दोस्तों पाकिस्तान में एक प्रधानमन्त्री को न्यायालय की अवमानना मामले में हटाने का मामला स्वागत योग्य कदम है ..इसे हमारे देश में भी अनुकरण करना चाहिए और दोस्तों अगर सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट के आदेशों की अवहेलना करने वालों को जेसी सजा पाकिस्तान में मिली है ऐसी सजा मिलने लगे तो जनाब यहाँ प्रधानमन्त्री से लेकर कई मंत्री और मुख्यमंत्री जेल में हो और पदों पर से हट जाए काश ऐसी जागरूकता हमारे देश में भी आजाये तो बात बन जाए ...........................यहाँ वेसे आम आदमी को तो सज़ा मिलती है ..................




पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने ने मंगलवार को अपने जिस आदेश में प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी को अयोग्य करार दिया है, उसमें दो भारतीय फैसलों का भी हवाला दिया गया है। इनमें से पहला मामला है-राजेंद्र सिंह राणा बनाम स्‍वामी प्रसाद मौर्य और दूसरा केस है-जगजीत सिंह बनाम स्‍टेट ऑफ हरियाणा। इन्हीं अदालती मामलों भारतीय अदालतों की ओर से सुनाए गए फैसलों की नज़ीर देते हुए पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने गिलानी को प्रधानमंत्री पद के लिए अयोग्‍य ठहराया।
जगजीत सिंह बनाम स्‍टेट ऑफ हरियाणा मामले में डेमोक्रेटिक दल ऑफ हरियाणा के जगजीत सिंह ने सरकार को कोर्ट में घसीटा था। हरियाणा विधानसभा से कुछ विधायकों को निलंबित कर दिया गया था। जिसके बाद वे कोर्ट चले गए थे। इसी केस के आधार पर पाकिस्ताना की सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली का स्‍पीकर जिस पावर का यूज करता है, उसे देखने का पावर सुप्रीम कोर्ट को है।
वहीं, वर्ष 2002 में मायावती सरकार ने विधानसभा भंग करने की सिफारिश की थी। बसपा के कुछ विधायक सपा से जा मिले थे। जिसके बाद बसपा के स्‍वामी प्रसाद मौर्य ने सुप्रीम कोर्ट चले गए। पाकिस्‍तान की सुप्रीम कोर्ट ने भारत के दो फैसलों के साथ कुल नौ फैसलों को आधार बनाकर गिलानी को अयोग्‍य माना है।

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