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18 जून 2012

जगदीश रथयात्रा 21 से, यहां आकर मिलती है जन्म-मरण से मुक्ति


हमारे देश भारत में अनेक परंपराएं प्रचलित हैं। इनमें से कई परंपराएं धर्म के साथ जुड़ कर लोगों की आस्था का केंद्र बन चुकी हैं। ऐसी ही एक परंपरा है पुरी में निकाली जाने वाली भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा। हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यताओं में चारों धामों को एक युग का प्रतीक माना जाता है। इसी प्रकार कलियुग का पवित्र धाम जगन्नाथपुरी माना गया है।

यह भारत के पूर्व में उड़ीसा राज्य के पुरी क्षेत्र में स्थित है, जिसका पुरातन नाम पुरुषोत्तम पुरी, नीलांचल, शंख और श्रीक्षेत्र भी है। उड़ीसा या उत्कल क्षेत्र के प्रमुख देव भगवान जगन्नाथ हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा राधा और श्रीकृष्ण का युगल स्वरुप है। ऐसी मान्यता है कि श्रीकृष्ण, भगवान जगन्नाथ के ही अंश स्वरूप हंै इसलिए भगवान जगन्नाथ को ही पूर्ण ईश्वर माना गया है।

इसी आस्था के साथ जगन्नाथपुरी में हर वर्ष हिन्दू माह के आषाढ़ शुक्ल द्वितीया (इस बार 21 जून, गुरुवार) को विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा आयोजित की जाती है। इसमें अलग-अलग रथों पर भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की प्रतिमाओं को तीन अलग-अलग दिव्य रथों पर नगर भ्रमण कराया जाता है। यह रथयात्रा पुरी का प्रमुख पर्व भी है। रथयात्रा दर्शन के लिए देश-विदेश से आए असंख्य धर्मावलंबी नर-नारी, बच्चे, बुजूर्ग उमड़ते हैं और भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचकर अपने जीवन को धन्य मानते हैं।

जगन्नाथपुरी की नव दिवसीय यह रथ यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से आरंभ होकर आषाढ़ शुक्ल दशमी को समाप्त होती है। यह यात्रा मुख्य मंदिर से शुरु होकर 2 किलोमीटर दूर स्थित गुंडीचा मंदिर पर समाप्त होती है। जहां भगवान जगन्नाथ सात दिन तक विश्राम करते हैं और आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन फिर से वापसी यात्रा होती है, जो मुख्य मंदिर पहुंचती है। यह बहुड़ा यात्रा कहलाती है। जगन्नाथ रथयात्रा एक महोत्सव और पर्व के रूप में पूरे देश में मनाया जाता है।

धार्मिक मान्यता है कि इस रथयात्रा के मात्र रथ के शिखर दर्शन से ही व्यक्ति जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। स्कन्दपुराण में वर्णन है कि आषाढ़ मास में पुरी तीर्थ में स्नान करने से सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य फल प्राप्त होता है और भक्त को शिवलोक की प्राप्ति होती है।


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