आपका-अख्तर खान

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17 मई 2012

में हूँ ना फिर क्यूँ सूरज की तपिश से डरते हो

हाँ
में बादल हूँ
यह सूरज
जिसकी तपिश
जिसकी गर्मी से
कांपते हो
आप लोग
हाँ
यही सूरज
दर और खोफ के साए में
झांकता है
मेरी ओट में छुपकर
हाँ
यही सूरज
जब इठलाता है अकड़ता है
अपने गुरुर में मदमस्त होकर
चिलचिलाता है तपाता है
तब
में ही तो हूँ
जो इसे अपने आगोश में लेकर
छुपा लेता हूँ
इसकी गर्म तपिश की हेकड़ी को
मेरी ठंडक में बदल देता हूँ
हाँ
इसी सूरज की तपिश
जिससे तुम डरते हो , घबराते हो ,चिल्लाते हो
यही सूरज मेरी पकड़ से निकलने के लियें
फडफडाता है ..गिडगिडाता है
इसकी तपिश इसकी गर्मी
में जब निचोड़ता हूँ खुद को
मेरी ठंडी पसीने की बूंदों से
इसी सूरज की तपिश
ठंडी होकर सर्द हवाओं में बदल जाती है
हां यही सूरज जब मेरे आगोश में होता है
तब
मुझ में से बिजलियाँ चमकती है पानी गिरता है
और यह सूरज मेरी केद में तड़पता है चिल्लाता है
तो दोस्तों क्यूँ डरते हो ..क्यूँ इतराते हो
न सूरज की तपिश है स्थिर ..ना आपका गुरुर है स्थिर
बस प्यार मोहब्बत और खुद की ताक़त पर भरोसा रख कर
अपने अखलाक से आगे बढ़ते चलो आगे बढ़ते चलो
और
कहो ..खुदी को कर बुलंद इतना
के हर तकदीर से पहले
खुदा
तुझ से पूंछे
बता तेरी रजा क्या है
और तेरी रजा तू बताये
ऐ खुदा तू मेरे मुल्क को
मेरे भारत महान को
खुशहाली से भर दे
यहाँ से भूख मरी गरीबी ..भ्रष्टाचार बेईमानी खत्म कर दे
यहाँ भाईचारा सद्भावना प्यार मोहब्बत की खानी शुरू कर दे
शायद तेरा खुदा दर कर भाग जाए
शायद तेरा खुदा
तेरी इस अदा पर
तुझे तेरी दुआ कुबूल करने का वरदान दे जाए ................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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