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24 मई 2012

सलून चलाते-चलाते बन गया 'डाक्टर', लोग कह उठे वाह!

रांची. उर्दू लाइब्रेरी के कोने पर दो चेयर और एक शीशा के सहारे अपनी जीविका चलाने वाले अशरफ को देखकर कोई नहीं सोच सकता कि इस शख्स के नाम के साथ डॉ. भी जुड़ा है। यह उच्च शिक्षा प्राप्त करने का जुनून ही था कि महज 10 रुपए में दाढ़ी बनाने का काम करने वाले हिंदपीढ़ी नदी ग्राउंड निवासी अशरफ ने रांची यूनिवर्सिटी से पीजी करने के बाद डॉ. गुलाम रब्बानी के अंडर में ‘ए कॉम्परेटिव एंड एनालिटिकल स्टडी ऑफ साउथ उर्दू स्टोरी राइटर इन झारखंड’ विषय पर पीएचडी किया। उपन्यासकार बनने की इच्छा रखने वाले अशरफ चाहते तो दस साल पूर्व ही प्राइवेट नौकरी कर लेते। लेकिन, उसमें सिमट कर रह जाने के डर से अपने पिता से विरासत में मिले काम को ही करना पसंद किया। इसके पीछे मकसद सिर्फ और सिर्फ जीविका चलाने के साथ उच्च शिक्षा हासिल करना था।


महिला उपन्यासकारों पर लिख रहे हैं किताब

डॉ. अशरफ इन दिनों अपने पेशे के साथ झारखंड की उर्दू में उपन्यास लिखने वाली महिलाओं पर किताब लिख रहे हैं। वह बताते हैं कि झारखंड में अच्छे उपन्यासकारों की कोई कमी नहीं है, लेकिन देश में एकाध को छोड़कर किसी की पहचान नहीं बन पाई है। इस कारण इस क्षेत्र में लोग झारखंड को पिछड़ा मानते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। यहां भी उर्दू के अच्छे उपन्यासकार मौजूद है जिनमें पुरुष के अलावा महिलाएं भी शामिल हैं। डॉ. अशरफ के अनुसार तीन-चार माह में उनकी किताब पूरी हो जाएगी।

उर्दू और हिंदी भाषा से बेहद लगाव

उर्दू के अलावा डॉ. अशरफ को हिंदी से भी काफी लगाव है। यही कारण है कि वह अपने बेटे को पीएचडी हिंदी में कराना चाहते हैं। वह कहते हैं कि अभी बेटा मदरसा में रहकर हाफिज की पढ़ाई कर रहा है। उसे पीएचडी कराना है, ताकि घर में उर्दू हिंदी का संगम हो सके।

राज्यपाल की दाढ़ी सेट करने की चाहत

डॉ. अशरफ का मानना है कि राज्यपाल सैय्यद अहमद जिस तरह की दाढ़ी रखते हैं, वह बेहतर ढंग से उसे सेट कर सकते हैं। वह कहते हैं कि वैसे तो कई बड़े अधिकारियों के घर जाकर काम करने का मौका मिला है, लेकिन राज्यपाल का दाढ़ी सेट करना मेरा सपना है।

दस साल पढ़ाई से रहा दूर

अशरफ ने 1987 में मैट्रिक पास किया। इंटर की पढ़ाई के दौरान पिता का इंतकाल हो गया। छह माह बाद मां भी चल बसी। छह भाई-बहनों में छोटा होने के बावजूद घर की जिम्मेवारी अशरफ के कंधों पर ही आ गई। बहन की शादी कराने में बड़े भाईयों का हाथ बंटाया। इस कारण अशरफ को 10 साल तक पढ़ाई से दूर रहना पड़ा। इस बीच 1998 में इनकी शादी हो गई। 1999 में फिर से पढ़ाई का शौक जागा। डोरंडा कॉलेज से उर्दू में ऑनर्स करने के बाद रांची यूनिवर्सिटी से पीजी और पीएचडी की डिग्री हासिल की। अशरफ के एक भाई रामगढ़ मिलिट्री कैंट में सेक्शन ऑफिसर के पद पर कार्यरत हैं। जबकि, दूसरे भाई का देहांत हो चुका है। ऐसे में अशरफ अपने परिवार के साथ भाई के परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेवारी भी उठा रहे हैं।

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