आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

17 मई 2012

रुपया तार-तार: इन छह कारणों से खस्‍ता है भारत की माली हालत





नयी दिल्‍ली. रुपया आज भी डॉलर के मुकाबले काफी कमजोर है। यह दस बजे 54.30 डॉलर के स्‍तर पर था।आशंका जताई जा रही है कि रुपये की कीमत 60 डॉलर प्रति रुपये तक जा सकती है। इसका सीधा असर देश की अर्थव्‍यवस्‍था पर पड़ेगा। सबसे ताजा और आम जनता को सबसे ज्‍यादा प्रभावित करने वाला असर बजट सत्र के बाद सामने आ सकता है, जब पेट्रोल के साथ-साथ डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी (क्रमश: पांच और तीन रुपये प्रति लीटर) की आशंका जताई जा रही है।



वित्‍त मंत्री ने ग्रीस संकट को कमजोर होते रुपये का कारण बताया है, लेकिन यह तात्‍कालिक कारण भर है। यूपीए सरकार के कार्यकाल में ऐसे कई कारण रहे हैं जो देश को बदहाली से उबरने नहीं दे रहे।


1. देश का जो माहौल है उसमें अब आर्थिक उपायों की घोषणा करना तो आसान है लेकिन देश का कानून बदलना जी का जंजाल। तमाम उपायों की घोषणा होती है लेकिन चीजें नहीं बदलतीं। एफडीआई की घोषणा सरकार करती है लेकिन अमलीजामा नहीं पहना पातीं।lसरकार पीएसयू में विनिवेश की घोषणा करती है लेकिन फिर वही ढाक के तीन पात। मामला वहीं का वहीं रुका रहता है।


2. प्रणब दा ऐसे माहौल में देश का खजांची बने हैं जबकि राजनीति गठबंधनों के दौर से गुजर रही है। वह कह भी चुके हैं कि गठबंधन सरकार के कारण कड़े फैसले करने में मुश्किलें दरपेश होतीं हैं। लोकलुभावन राजनीति के सहारे राज्‍यों की सत्‍ता हासिल करने वाले क्षेत्रीय दल अक्‍सर अपने हितों के लिए राष्‍ट्रीय उपायों की अनदेखी कर देते हैं।



3.लगातार बढ़ते सब्सिडी के बिल पर लगाम नहीं लग पा रहा है। सब्सिडी थमती नहीं , कम नहीं होती जिससे एक बारगी लोगों को राहत भले ही महसूस हो लेकिन लांग टर्म में वह देश की आय को नुकसान पहुंचाती है। सब्सिडी मदद की तरह हो न कि भारी बोरे के बोझे की तरह।



4. पिछले साल सरकार ने मंत्रालयों और अन्‍य विभागों को किफायत बरतने के उपायों को अपनाने की सलाह दी थी। उनसे कहा गया था कि स्‍थानीय ,राज्‍यों और केंद्र सरकार के स्‍तर पर खर्चों में कटौती की जाए। खासकर बेसिरपैर वाले सेमीनार जिनमें अंतहीन बहस होती है और फिर वही बंधे बंधाए निष्‍कर्ष सामने आ जाते हैं लेकिन लगता है कि मंत्रालयों और विभागों के कानों में जूं तक नहीं रेगी और ऊटपटांग किस्‍म के खर्चे पर लगाम नहीं लग सकी है।


5. सरकार ने गैर योजनागत व्‍यय में कटौती की बात कही थी। ऐसा तब किया गया था जब योजनागत व्‍यय और गैर योजनागत व्‍यय का अनुपात ठीक बना हुआ था। इस नान प्‍लांड एक्‍पनडीचर में कमी का मकसद राजकोषीय घाटे के कारण खजाने पर पड़ पर रहे दबाव को काबू में लाना था लेकिन ऐसा हो नहीं सका और सरकार के पाप का घड़ा थोड़ा और बढ़ गया।


6. धड़ाधड़ हो रहे घोटाले और हर बार घोटाले की रकम बढ़ कर सामने आती है । इन घोटालों के कारण प्रणब दा ने फील गुड फैक्‍टर खो दिया है। सरकार पर विश्‍वास की नींव में दरारें डाल दी हैं इन घोटालों ने। प्रणब दा के निकट सहयोगियों पर भी इन घोटालों की छाया पड़ी दिखती है जिससे लगता है कि वित्‍त मंत्री अकेले पड़ गये हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...