मैंगलोर। कर्नाटक के मैंगलोर में देवी को खुश करने के लिए जलती मशालों से जंग लड़ने की एक अजीबोगरीब परंपरा निभाई जाती है। मैंगलोर के कटील में मौजूद प्रसिद्ध दुर्गा परमेश्वरी मंदिर में आस्था के नाम पर आग से खेलने का दिल दहला देने वाला खेल खेला जाता है। यहां आठ दिनों तक यह सालाना उत्सव चलता है।
इलाके के लोगों के मुताबिक ये परंपरा सदियों से चली आ रही है। "अग्नि केलि" नाम का ये खेल दो गांव के लोगों के बीच खेला जाता है। सबसे पहले देवी की शोभा यात्रा निकाली जाती है इसके बाद पास ही में बने तालाब में डुबकी लगाने के बाद दो गांव आतुर और कलत्तुर के लोग दो गुटों में बंट जाते हैं और अपने अपने हाथों में नारियल की छाल से बनी मशाल लेकर एक दूसरे के विरोध में खड़े हो जाते हैं।
मशालों को जलाया जाता है और फिर शुरू हो जाता है जलती मशालों को एक-दूसरे पर फेंकने का खेल। ये खतरनाक खेल करीब 15 मिनट तक खेला जाता है। इस दौरान एक शख्स को सिर्फ पांच बार जलती मशाल फेंकने की इजाजत होती है।
इसके बाद वो इस मशाल को बुझाकर वहां से हट जाता है लेकिन आस्था के नाम पर इस खतरनाक खेल से कितना नुकसान हो सकता है इसकी चिंता ना तो प्रशासन को है और ना ही इस खेल में हिस्सा लेने वालों को।
मंदिर के पुजारी का कहना है कि यह परंपरा सदियों पुरानी है, और सिर्फ कोदेथुर और अथूर गाव के लोग इसमें शामिल होते है। इस भयानक अग्नि खेल के पीछे दुर्गा जी को प्रसन्न करने का तर्क दिया जाता है्। इसमें वहीं आदमी भाग लेते है जो आर्थिक या शारीरिक किसी परेशानी में होते है। यह अग्नि उत्सव आठ दिनों तक चलता है। इस दौरान यहां पर मांस और मदिरा का सेवन एकदम बंद हो जाता है।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
03 मई 2012
हजारों साल पुराना रहस्य, पूजा ख़त्म होते ही बरसती है 'आग'
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)