इस पुस्तक का सोमवार को कुल्लू के देवसदन में लोकार्पण किया गया। इसका विमोचन राष्ट्रीय साहित्य अकादमी दिल्ली के उप सचिव ब्रजेंद्र त्रिपाठी ने किया। इस पुस्तक में पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में नाग परंपरा पर किए गए शोध कार्य को शामिल किया गया है।
५५ विद्वानों ने किया शोध: देवप्रस्थ साहित्य एवं कला संगम कुल्लू के महासचिव डॉ. सूरत ठाकुर ने बताया कि पश्चिमी हिमलाय में नाग परंपरा नामक इस पुस्तक में हिमाचल, उत्तराखंड तथा जम्मू-कश्मीर के करीब ५५ विद्वानों ने शोध किया।
इन परंपराओं का खुलासा
पुस्तक में नागों की पूजा कैसे होती है, नागों को लेकर मनाए जाने वाले मेले और त्यौहर, शास्त्रों में इसे किस रूप में देखा गया है। विद्वानों का मानना है कि नागों को पाताल लोक का राजा है और धरती लोक पर कैसे आया और यहां कैसे स्थापित हुआ, कैसे प्रसिद्धि मिली इन तमाम पहलुओं पर शोध किया गया है। उनका मत है कि हिमालयी क्षेत्रों में नागों के नाम के वन, तालाब और पहाड़ियां आदि तीर्थ स्थल भी हैं। इन तीर्थ स्थनों का नागों के साथ क्या संबंध रहा है इसको लेकर भी पुस्तक में है।
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