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18 मई 2012

एक ऐसा इलाका, जहां हर दिन जानलेवा लहरों के बीच मौत का खेल खेलते हैं लोग

जबलपुर। देश के विकास के लिए बना बरगी बांध यहां के रहवासियों के लिए समाधि स्थल बनता जा रहा है। बांध बनने के बाद से यहां से विस्थापित परिवार आज बहिष्कृत जीवन जीने को मजबूर हैं। नर्मदा किनारे घाटियों में निवास कर रहे ये परिवार मूलभूत सुविधाओं से महरूम हैं। इन्हें घाट के एक किनारे से दूसरे किनारे तक पहुंचने के लिए अपनी जान तक की दांव में लगाना पड़ता है।

नर्मदा नदी पर बनने वाले तीस बड़े बांधों में रानी आवंती बाई लोधी सागर बांध पहला कम्प्लीट बांध है। सेंट्रल वाटर कमीशन ने 1968 में इस बांध को बनाने का प्रस्ताव पारित किया था। इसके बाद 1975 में इस बांध का निर्माण कार्य शुरू किया गया। इसके तहत 162 गांव प्रभावित हुए, जिनमें 82 गांव पूर्णता: डूब गए। इनमें मंडला जिले के 95 गांव, सिवनी के 48 गांव तथा जबलपुर के 19 गांव प्रभावित हुए हैं। इनमें करीब १क् से बारह हजार परिवार विस्थापित हुए हैं, जो आज रोजी रोटी के लिए मोहताज हैं।

बांध बनने के पहले नर्मदा नदी के दोनों किनारों पर रह रहे परिवारों की एक दूसरे से नाते रिस्तेदारी और आपसी कारोबार चलता था, जिसके लिए नदी का पाट कम होने से लोग छोटी-छोटी डोंगी के सहारे एक किनारे से दूसरे किनारे तक पहुंच जाते थे। गर्मी के दिनों मे तो लोग पैदल ही यहां आना जाना करते थे, लेकिन रानी आवंती बाई सागर का निर्माण होने से अब यह संभव नहीं रह गया। यहां लोगों का आना-जाना कम हो गया, लेकिन शादी विवाह एवं मृत्यु के मौकों पर जल परिवहन के लिए कोई साधन न होने से रिस्तेदारी निभाने लोग छोटी-छोटी डोंगियों के सहारे जान जोखिम में डाल एक किनारे से दूसरे किनारे तक आनाजाना करते हैं। ऐसे में कई बार नदी में उठती ऊंची लहरें इनकी मौत का कारण बन जाती हैं।

इस समस्या का समाधान करने यहां रह रहे विस्थापित परिवारों ने नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण को जल परिवहन की व्यवस्था करने का प्रस्ताव भी दिया, लेकिन इसके बाद भी प्रशासन व राजनेताओं ने इनके बचाव व आवागमन के लिए कोई पहल नहीं की। इसके चलते एक के बाद एक बांध के अथाह जल में डूबकर मौत के मुंह में समाते चले गए।

बरगी नगर में बाजार होने के कारण यहां रह रहे विस्थापित परिवार राशन, बीमारों का इलाज तथा अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आज भी जान की बाजी लगाकर कस्ती के सहारे आना जाना करते हैं।

अब तक हो चुकी हैं कई मौतें : 31 दिसंबर 2001 में बरगी नगर बाजार करने आए पौड़ी निवासी भारत, महेंद्र व भानवती बाई की कश्ती पलटने से मौत हो गई थी। वहीं 26 अप्रैल 12 को ग्राम किरहुपिपरिया एवं मुलडोंगरी के आदिवासी परिवार लड़के के फलदान के लिए ग्राम रजौला जा रहे थे। इस दौरान शाम करीब तीन बजे नर्मदा में तेज लहरें उठने एवं तेज हवा चलने से कश्ती पटल गई। इसमें नौ लोग सवार थे, जिनमें से डूबने से 6 लोगों की मौत हो गई। वहीं तीन में से दो को दूसरे कश्ती के लोगों ने बचाया तो एक ने तैर कर अपनी जान बचाई।

इन विस्थापित परिवारों के लिए डूब से खुलने वाली जमीन ही खेती का साधन है। ऐसे में वहां आने जाने व मत्साखेट करने के दौरान नाव डूबने से मौतें हो जाती हैं। ग्राम पौंड़ी, बीजाडांडी व मंडला में अभी तक इस बावत नर्मदा पार करते समय तीन लोगों की मौत हो चुकी हैं। इसके बाद भी प्रशासन इन विस्थापित परिवारों की अनदेखी कर रहा है, जो इन परिवारों के लिए न्याय संगत नहीं है।

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