मौके पर मुहर के अलावा मिट्टी की चूड़ी के लगभग 4.6 वर्गाकार टुकड़े, लगभग 1.8 सेमी वर्गाकार गेंद, मिट्टी का मनका व उसके तीन टुकड़े, सलेटी व लाल मृदपात्र के टुकड़े व एक टौंटीदार मृदपात्र मिले हैं। विभाग के विशेषज्ञों ने मुहरों व अन्य आइटम्स का अध्ययन कर लिया है। पिछले दिनों पुरातत्व विभाग की टीम मौके से मुहर और अन्य मिले आइटम्स जयपुर लाई। टीले की खुदाई में और भी पुरामहत्व की सामग्री मिलने के संकेत मिले हैं।
यह सामने आया अध्ययन में
गोहंदी टीले के चारों ओर कुषाण काल की ईंटें आज भी दिखाई दे रही हैं। ये ईंटें 36 सेमी लंबी, 25 सेमी चौड़ी व 6.5 सेमी मोटाई की हैं। जिस आकार की ये ईंटें हैं, वे क्षत्रपों के काल में हुआ करती थीं, जो मिट्टी से बनती थीं। तब भवनों की दीवार बनाने में इनका उपयोग किया जाता था। 200 ईसा पूर्व से 200 ईसवी के भवनों में इसी प्रकार की ईंटों के अवशेष मिलते हैं। बौद्ध स्तूप की दीवारों में इसी आकार की ईंटों के अवशेष आज भी मौजूद हैं। गोहंदी में टीले पर प्राकृतिक रूप से बनी ट्रेंच में कोयले के टुकड़े, राख, हड्डियों व मृदपात्र के टुकड़े दिखाई दे रहे हैं।
यह है मुहर का महत्व
गोहंदी में मिली मुहर पर जो लिपि लिखी है वह ब्राह्मी अक्षर हैं। जो अक्षर पढ़ने में आ रहे हैं वे हिंदी में ज, य, प, क, र, द्र, ध/व आदि हैं। शेष अक्षर अस्पष्ट हैं। पुरातत्वेत्ताओं के अनुसार ये मुद्रा मृणमुद्रा कहलाती हैं। जो वर्तमान सिक्के नुमा हैं।
मौके पर पहुंची टीम के सदस्य एवं विभाग के वृत्त अधीक्षक जफरउल्लाह खां का कहना है कि कई जनपदों की मृणमुद्राएं मिलती हैं, जिनमें ब्राह्मी लेख अंकित रहते हैं। मृणमुद्रा पर अंकित लेख क्षत्रप एवं जनपदीय सिक्कों के अनुरूप हैं। एक अन्य सदस्य अधीक्षक (उत्खनन) कृष्णकांता शर्मा का कहना है कि गोहंदी का टीला चित्रित धूसर पहाड़ी है, जिसे संरक्षित करने की जरूरत है। ऐसी साइट्स का सर्वे किया जा रहा है।
'गोहंदी के टीले में मुहर व अन्य सामग्री मिली है, इनका अध्ययन किया गया है। ये सामग्री राज्य के किसी प्रमुख संग्रहालय का हिस्सा बनेंगी।'