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25 मई 2012

चमत्कारी शक्तिपीठ, जहां गिरा सती का अंग व शिव ने छोड़ा वियोग

हिन्दू धर्म में देवी के 51 शक्तिपीठों में से कामाख्या या कामरूप शक्तिपीठ का सबसे अधिक महत्व है। यह भारत की उत्तर-पूर्व दिशा में असम प्रदेश के गुवाहाटी में स्थित है और कामाख्या देवी मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है। पुराण के अनुसार यह देवी का महाक्षेत्र है। यह मन्दिर नीलाचल पहाड़ी पर स्थित है। यह क्षेत्र कामरूप भी कहलाता है। ऐसा माना जाता है कि देवी कृपा से कामदेव को अपना मूल रूप प्राप्त हुआ।

देश में स्थित विभिन्न पीठों में से कामाख्या पीठ को महापीठ माना जाता है। इस मंदिर में 12 स्तम्भों के बीच देवी की विशाल मूर्ति है। मंदिर एक गुफा में स्थित है। यहां पहुंचने का मार्ग पथरीला है, जिसे नरकासुर पथ भी कहा जाता है। मंदिर के पास ही एक कुण्ड है, जिसे सौभाग्य कुण्ड कहते हैं। इस स्थान को योनि पीठ के नाम से भी जाना जाता है।

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक जब दक्ष प्रजापति द्वारा कराए यज्ञ में अपने पति शिव के अपमान से दु:खी सती ने योगाग्रि से स्वयं को भस्म कर लिया तब शिव वियोगी बन सती की मृत देह को लेकर यहां-वहां घूमने लगे। भगवान विष्णु ने उनका वियोग दूर करने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से सती की मृत देह के टुकड़े कर दिए।

माना जाता है कि तब सती की देह का योनि अंग यही गिरा था। इसके बाद ब्रह्मदेव और भगवान विष्णु ने सती की अपार शक्ति के बारे में शिव को ज्ञान दिया। ज्ञान पाने पर भी शिव के मन से सती के अलगाव का दु:ख दूर नहीं हुआ। तब ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने देवी भगवती की प्रसन्नता के लिए इसी कामरूप स्थान पर तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने शिव को वर दिया कि वे हिमवान के यहां गंगा और पार्वती के रूप में जन्म लेकर उनसे विवाह करेंगी।

यहां पर देवी का शक्ति स्वरुप कामाख्या है एवं भैरव का रुप उमानाथ या उमानंद है। उमानंद को माता का रक्षक भी माना गया है।

कामाख्या देवी मंदिर में मान्यता है कि यहां देवी को लाल चुनरी या वस्त्र चढ़ाने से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं । देवी की मात्र पूजा एवं दर्शन से सभी विघ्र, कष्ट दूर हो जाते हैं। यहां कन्या पूजन की भी परंपरा है।

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