सेंट्रल रेलवे के कर्मचारी गिरीश म्हात्रे ने जमानत याचिका लगाई थी। गिरीश म्हात्रे और एक महिला दोस्त थे। वह महिला गिरीश पर शादी के लिए दबाव बना रही थी। एक साल से शादी करने की बात स्टाम्प पेपर पर लिखने के लिए मजबूर कर रही थी। म्हात्रे ने किसी दूसरी लड़की से शादी कर ली। इसके बाद महिला ने उस पर दुष्कर्म और धोखाधड़ी का केस दर्ज करा दिया।
‘मना कर सकती थी’
जस्टिस ठिप्से ने कहा,‘चूंकि आवेदक और शिकायतकर्ता में रजामंदी से रिश्ते बने। म्हात्रे ने किसी और से शादी कर ली। इस वजह से 4 अप्रैल को उसके खिलाफ एफआईआर दाखिल हुई। उसे जमानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता।
म्हात्रे के खिलाफ धारा 420 के तहत प्रकरण दर्ज नहीं किया जा सकता। जिसका संबंध बेईमानी या धोखाधड़ी से किसी की संपत्ति हासिल करने से है। एक अन्य हाईकोर्ट ने चैस्टिटी को संपत्ति माना है। मैं इससे सहमत नहीं हूं। महिला शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाने से इनकार भी कर सकती थी।’
आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट ने चैस्टिटी को संपत्ति माना था
इसी तरह के एक मामले में 2002 में आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस सी सोमायाजुलु ने महिला की चैस्टिटी या वर्जिनिटी को आईपीसी की धारा 415 के तहत संपत्ति माना था। उन्होंने कहा था, पैसे के लालच में शारीरिक संबंध बनाने वाली महिला वेश्या कहलाती है। लेकिन, यदि पुरुष शारीरिक सुख के लिए शादी का प्रलोभन देता है तो इसे संपत्ति छीन लेने जैसे केस की श्रेणी में रखा जा सकता है। परंपरागत तौर पर भारतीय महिलाएं अपनी वर्जिनिटी अपने पति के लिए बचाकर रखती हैं। तेलगु में एक कहावत भी है, जिसके मायने हैं कि मेरी चैस्टिटी चुरा ली। इसलिए इसे यहां संपत्ति के तौर पर ही देखा जाता है।
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