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14 मई 2012

जेल में ही रात्रि अदालत का सुझाव


देश भर में कैदियों की बड़ी संख्या से निबटने के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने छोटे मामलों की सुनवाई जेल में ही रात्रि अदालत लगाकर करने का सुझाव दिया है।

आयोग के अध्यक्ष केजी बालकृष्णन ने कहा कि जेलों में कैदियों की संख्या कम करने के लिए कई रणनीतियां अपनाई जा सकती हैं, जिनमें पुलिस द्वारा भेदभावपूर्ण गिरफ्तारी नहीं करना और गरीबों को कानूनी मदद सुनिश्चित करने जैसे कदम शामिल हैं। उन्होंने कहा कि भारत में विचाराधीन कैदियों की संख्या बहुत ज्यादा है।

बालकृष्णन ने कहा, जेलों में ही कुछ अदालतें लग सकती हैं ताकि छोटे मामलों को निपटाया जा सके। इनका समय शाम चार बजे से रात आठ बजे तक हो सकता है। इसके लिए जजों को अलग से कुछ वेतन दिया जा सकता है। इससे पहले कुछ जगहों पर सांध्य अदालतें लगाई गई थीं। गवाह शाम को आना पसंद करते हैं, ताकि उन्हें अपना मेहनताना न गंवाना पड़े।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि देश की 1393 जेलों में तीन लाख 68 हजार 998 कैदी बंद हैं, जबकि जेलों की क्षमता तीन लाख 20 हजार 450 कैदियों की है।

बालकृष्णन ने कहा कि कई बार लोगों को अनावश्यक रूप से जेल में बंद किया जाता है। एक अन्य मुद्दा यह है कि अदालत से रिहाई आदेश पाने वाले गरीब लोग जमानत पेश नहीं कर पाते हैं। वे जेलों से बाहर नहीं निकल पाते। इस तरह के लोगों को निजी मुचलके पर रिहा किया जाना चाहिए, लेकिन जघन्य अपराधों के आरोपियों के लिए ऐसा करना मुश्किल है।

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