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31 मई 2012

जानिए, क्यों घर में रखा गंगाजल लंबे वक्त तक नहीं होता खराब


गंगा नदी धर्म, आस्था, श्रद्धा और पवित्रता का साक्षात् स्वरूप है। गंगा नदी स्थान विशेष पर ही नहीं, बल्कि धर्म-कर्म और परंपराओं के जरिए हर धर्मावलंबी के विचार-व्यवहार में भी पावनता के साथ हमेशा बहती रही है। सनातन परंपराओं में गंगाजल का उपयोग हर धार्मिक व मांगलिक कार्यों में पवित्रता के लिए किया जाता है। शिशु जन्म हो या मृत्यु से जुड़े कर्म, सभी में गंगा जल से शुद्धि की परंपरा है। मृत्यु के निकट होने पर व्यक्ति को गंगा जल पिलाने और दाह संस्कार के बाद उसकी राख को गंगा के पवित्र जल में प्रवाहित करने की भी पंरपरा रही है।
धार्मिक दृष्टि से गंगा पापों का नाश कर मोक्ष देने वाली, मंगलकारी और सुख-समृद्धि देने वाली, कामनाओं को पूरा करने वाली देव नदी मानी गई है। ऐसी जीवनदायी और पावन होने के कारण गंगा के जल को अमृत भी पुकारा जाता है। वैज्ञानिक तथ्यों से भी इस बात को बल मिलता है कि गंगा जल पवित्र और चमत्कारी है। जानिए गंगा जल की पवित्रता से जुड़े विज्ञान को -
गंगा जल की वैज्ञानिक खोजों ने साफ कर दिया है कि गंगा गोमुख से निकलकर मैदानों में आने तक अनेक प्राकृतिक स्थानों, वनस्पतियों से होकर प्रवाहित होती है। इसलिए गंगा जल में औषधीय गुण पाए जाते हैं। इसके साथ ही वैज्ञानिक अनुसंधानों में यह पाया गया है कि गंगाजल में कुछ ऐसे विशेष जीव होते हैं जो जल को प्रदूषित करने वाले विषाणुओं को पनपने ही नहीं देते बल्कि उनको नष्ट भी कर देते हैं, जिससे गंगा का जल लंबे समय तक खराब नहीं होता है। इस प्रकार के अनूठे गुण किसी अन्य नदी के जल में नहीं पाए गए हैं।
इस तरह गंगा जल धर्म भाव के कारण मन पर और विज्ञान की नजर से तन पर सकारात्मक प्रभाव देने वाला होने से जीवन के लिए अमृत के समान है। यही कारण है कि गंगा की धारा के साथ हर भारतीय की रग-रग में धर्म बहता चला आ रहा है।

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