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16 अप्रैल 2012

खुद को भगवान कहने वाले निर्मल बाबा हैं कैमिकल लोचे के शिकार


लुधियाना. निर्मल बाबा बीमार हैं! खुद को भगवान कहने वाले कैमिकल लोचे का शिकार होते हैं। शहर के मनोचिकित्सकों के लिए हर चौथे दिन की बात हो गई है, जब कोई न कोई भगवान इलाज कराने के लिए आते हैं। डाक्टरों का कहना है कि मेनिया सिंड्रॉम एक तरह दिमागी रोग है, जिसमें इंसान खुद को पावरफुल मानने लग जाता है।

मानस केंद्र के डा.राजीव गुप्ता के मुताबिक मेनिया सिंड्रॉम के केस रूटीन में आते हैं। हाल ही में एक 25 साल के युवक को परिवार वाले इलाज के लिए लाए। इस युवक का कहना था कि वह भगवान है, और दुनिया का विनाश कर देगा। कई बार ऐसे मरीज भी आते हैं, तो खुद के प्रधानमंत्री बनने तक की बात कहने लग जाते हैं।

रविवार को इंडियन साइकेट्रिक एसोसिएशन नार्थ जोन की कांफ्रेंस में पहुंचे मनोचिकित्सकों में आए इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड अलायड साइंस नई दिल्ली के डायरेक्टर डॉ.निमेश देसाई के मुताबिक मेनिया सिंड्राम बड़ी सामान्य सी बीमारी है। इसमें इंसान खुद को क्षमता से अधिक मानने लग जाता है। उधर, निर्मल बाबा के थर्ड आई के दावे को मनोचिकित्सक सिरे से खारिज कर रहे हैं।

डा.राजीव गुप्ता के मुताबिक किसी व्यक्ति द्वारा तीसरी आंख का दावा करना लोगों को गुमराह करना है। यकीनन कई बार ऐसे लोग आकर ये दावा करते हैं कि कई बार उन्हें संकट का पहले ही आभास हो गया। वे इसे चमत्कार मानते रहते हैं, लेकिन असल में ये इंट्यूशनल पावर होती है।

इंसान में कई बार इतना अनुभव आ जाता है, वह किसी मामले में कदम उठाने से पहले सही गलत का आंकलन कर गलत कदम के संकट का पता लगा लेता है। यह चमत्कार नहीं बल्कि अनुभव आधारित आंकलन होता है। सीएमसी में साइकेट्रिक डिपार्टमेंट के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ.संदीप गोयल के मुताबिक विज्ञान चमत्कार के दावे को नहीं मानता, जब तक वह साबित न हो।

रिसर्च होनी चाहिए : डॉ.देसाई

डॉ. निमेश देसाई के मुताबिक विश्वास व विज्ञान दो अलग-अलग क्षेत्र हैं, जिनके अपने ढांचे बने हुए हैं। इमोशनल या विश्वास आधारित तथ्यों को विज्ञान मान्यता नहीं देता, पर फिर भी समाज में उनकी मान्यता खत्म नहीं होती। विज्ञान में पुनर्जन्म व टेलीपैथी पर रिसर्च चल रही है। थर्ड आई पर भी रिसर्च होनी चाहिए लेकिन रिसर्च के नतीजे आने तक वैज्ञानिक तौर पर थर्ड आई, छठी इंद्री, भविष्यवाणी जैसे दावों को नहीं माना जा सकता।

मनोचिकित्सकों का तर्क है कि देश में कई तरह के बाबा व तांत्रिकों के चमत्कारों के दावों के बीच सभी लोग तो उनके पास नहीं जाते। डॉ.निमेश देसाई के मुताबिक देखा गया है कि परेशान, मानसिक तौर पर कमजोर व परेशानी का आसान हल ढूंढने वालों में गैर वैज्ञानिक दावों पर जल्द विश्वास करने की मानसिकता होती है।

निर्मल बाबा को खुला चैलेंज

तर्कशील सोसायटी ने 28 साल से खुला चैलेंज किया हुआ है कि वैज्ञानिक मान्यताओं से अलग कुछ भी साबित करने वाले को इनाम दिया जाएगा। पहले इनाम एक लाख था, अब बढ़ाकर पांच लाख कर दिया है। इतने सालों में सिर्फ बस्सी पठानां के एक ज्योतिषि ने चैलेंज कबूल किया। उसने भी पांच हजार रुपये की सिक्योरिटी राशि जमा कराई पर बाद में पीछे हट गया। ये चैलेंज निर्मल बाबा के लिए भी खुला है। -दलबीर कटाणी, जोन ऑर्गेनाइजर तर्कशील सोसायटी

कानून सिर्फ उन्हीं चीजों को मान्यता देता है, जो वैज्ञानिक तौर पर साबित हो चुकी हों। जिस शक्ति का निर्मल बाबा दावा कर रहे हैं, वह कानूनी पहलू से तब तक मान्य नहीं है, जब तक उसका कोई ठोस वैज्ञानिक आधार नहीं आ जाता। कोई शिकायतकर्ता सामने आकर दावा कर दे कि उसको गैर वैज्ञानिक दावे करके गुमराह किया गया है, तभी धारा 420 की कार्रवाई की जा सकती है। -परोपकार सिंह घुम्मण, पूर्व प्रधान जिला बार संघ

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