आपका-अख्तर खान

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25 अप्रैल 2012

में जाना के एक माँ एक पत्नी कितने समर्पण से अपना घर परिवार बनाती है..उसे ख़ामोशी से चलाती है है

दोस्तों एके पत्नी और एक माँ की क्या जिम्मेदारियां होती है यह इन दिनों नजदीक से जानने को मिला ....कहने को हम किसी भी होरत को बेकार ..निकम्मी ..कामचोर कह देते है लेकिन एक ओरत किस तरह से अपने निजी कामकाजों के साथ सभी के काम कर उन्हें संतुष्ट रखने की कोशिश करती है इनदिनों में रोज़ नये नये अंदाज़ में सकझ रहा हूँ दोस्तों मुझे यह स्वीकार करने में जरा भी शर्म नहीं है के में भी मजबूरी में ही सही लेकिन रसोई का अस्थाई सदस्य बन गया हूँ .............मेने जब से होश सम्भाला है तबसे खुदा का शुक्र है के मेरी अम्मी ने मुझे बढ़े प्यार से शाही अंदाज़ में पाला है ....मुझे एक रुमाल तक धोने की जरूरत नहीं पढ़ी है ..वक्त पर धुले हुए प्रेस किये कपड़े मिलना ..खाना मिलना और मोज करना मेरी आदत रही है ..खुदा का शुक्र यह भी रहा के मेरी शादी हुई और मेरी शरीके हयात ने भी इसी का अनुसरण किया ..टेबल पर खाना ..नहाने के पहले कपड़े ..टवाल ..सुबह वक्त पर चाय और मनचाही फरमाइश वक्त पर पूरी होना ..एक यांत्रिक तरीके से बच्चों का स्कुल जाना ..मम्मी पापा के बारे में सभी कामकाज होना रोज़ मर्रा की जिंदगी थी... लेकिन यकीन मानिये मुझे यह पता नहीं था के इन सब में मेरी शरीके हयात की खामोशी और समर्पण भी शामिल है .रोज़ सुबह वक्त से पहले फजर यानि पांच बजे उठना ..देनिक नमाज़ वगेरा के बाद सुबह की चाय .बच्चों की तय्यारी ..बच्चों का स्कूली टिफिन ...वालिद साहब का नाश्ता ...वाल्दा की चाय मेरे कपड़ों की प्रेस ..नहाने के पहले कपडे और टावल रखने सहित सभी आवश्यक कार्यों के अलावा वक्त पर खुद के स्कूल जाना रोज़मर्रा की बात थी ....अभी इन दिनों अचानक ना जाने कोनसी गलती हुई के खुदा नाराज़ हुआ या यूँ कहिये के आप लोगों की ढेर सारी दुआएं थी के बढ़े गुनाह की सजा की जगह खुदा ने सिर्फ प्रतीकात्मक तरीके से सबक सिखाया और मेरी शरीके हयात का सीधा हाथ फेक्चर हो गया प्लास्टर दो महीने का बांधा गया ..डोक्टर ने आराम की सलाह दी वेसे भी सीधे हाथ में चोट लगने के कारण सभी कामकाज प्रभावित थे ..एक तो शरीके हयात सेठानी का काम भी कर रही थी ..इनके बेंक खाते में माल था बच्चों की फ़ीस वगेरा का वज़न अब चेक पर साइन केसे हों ..खेर कार्ड से काम चला लिया गया ..इसी बीच वालिद की तबियत खराब ..वाल्दा के पाँव में बालतोड़ हों जाने से मामला और मुझ पर ज़िम्मेदारी का बन गया ..यकीन मानिये सुबह बच्चों को स्कूल जाना उनके लियें टिफिन की जरूरत सुबह की चाय जरूरी थी ..में अपने जीवन में कभी किचन में नहीं गया था मेने किचन में कोनसी चीज़ कहाँ रखी है बाई से समझी ..मेरे रईसी ठाठ हवा हुए ....मेने अलार्म लगाया सुबह उठा ..चाय बनाई ..बच्चों के टिफिन के लियें परांठे बनाये ...ब्रेड बटर का काम किया ..बच्चों को तय्यार किया ..खुद अलमारी को बिखेर कर मेरे कपडे बनियान वगेरा निकल कर ढूंढे ..नहाया धोया ..बच्चों को टिफिन दिया स्कूल पहुंचाया हो गए दो घंटे खत्म ..मम्मी पापा को भी चाय नाश्ता कराया और अदालत रवानगी हो गयी .....शुरू में तो शरीके हयात ने काफी रोकना चाहा लेकिन मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी है ..काम करने वाली बाई दस बजे आती है ..स्कुल का टिफिन और नाश्ता चाय सुबह तय्यार करना होती है ..नहाने धोने के लियें कपडे वगेरा सुबह जरूरी होते है ..तो दोस्तों यकीन मानना कुछ हालत ऐसे बने के मेने जो जीवन में कभी किचन नहीं देखी थी किचन सुबह ही सही लेकिन सम्भाल ली ..पहले तो में आस पडोस को पता न चले छुप कर काम करता था लेकिन एक दिन दो दिन वक्त गुज़रा और लोगों को भी पता शायद चला ही होगा.. क्योंकि बाई जी को भी बुरा लगता था लेकिन सुबह आना उनके लियें सम्भव भी नहीं था ..खेर में दिल मजबूत किया और पहले जो में किसी भी घर के कामकाज को करने में शर्मिंदगी समझता था जब मुझे मजबूरी में यह काम करना पढ़े तो में खामोश चोरों की तरह से छुपा छुपा फिर लेकिन अब मेने जाना के एक ओरत अपने परिवार को चलाने.. बच्चे पालने और सास ससुर और रिश्तेदारों को बनाये रखने के लियें कितनी महनत करती है.. कितनी बातें सुनती है और फिर भी कई जगह ओरत को गलियाँ और दुत्कार के सिवा कुछ नहीं मिलता ..मेने दिल मजबूत किया और एक सप्ताह तक सोचने के बाद मेरे अन्दर के इस सच को आप लोगों के साथ शेयर करने का साहस किया है खुदा ना करे मेरी जेसी परेशानी किसी और पर आये लेकिन सच यही है के ओरत का वुजूद आदमी को कुशल प्रबंधन ,,,,सुकून की नींद ,,बेफिक्री और एक जन्नत सा आनंद देने के लियें काफी है ....................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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