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10 अप्रैल 2012

"अंतर्मन की आहट की टकराहट को,

"अंतर्मन की आहट की टकराहट को,
आकार दे दिया तुमने यों कविता कह कर.
अपनी ही आवाजें जब टकराती हैं अपने अन्दर
जो शोर उठा उसको उसको दिल से लग कर
यह लोग कहा करते हैं वह तो ज़िंदा है." ----राजीव चतुर्वेदी

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