होली यानी रंगों का त्यौहार हमारे देश की सबसे अनोखी परंपराओं में से एक है। जिन्दगी को रंगों से भर देने वाले इस त्यौहार का हमारे देश में धार्मिक महत्व भी बहुत अधिक है। इस दिन से जुड़ी हमारे यहां अनेक लोक परंपराएं है। ऐसी ही एक परंपरा है होलिका का पूजन कर जलती होली में अन्न या धान डालने की।
दरअसल इस परंपरा का कारण हमारे देश का कृषि प्रधान होना है। होलिका के समय खेतों में गेहूं और चने की फसल आती है। ऐसा माना जाता है कि इस फसल के धान के कुछ भाग को होलिका में अर्पित करने पर यह धान सीधा नैवैद्य के रूप में भगवान तक पहुंचता है। होलिका में भगवान को याद करके डाली गई हर एक आहूति को हवन में अर्पित की गई आहूति के समान माना जाता है।
साथ ही ऐसी मान्यता है कि इस तरह से नई फसल के धान को भगवान को नैवैद्य रूप में चढ़ा कर और फिर उसे घर में लाने से घर हमेशा धन-धान्य से भरा रहता है। इसलिए होलिका में धान डालने की परंपरा बनाई गई। आज भी हमारे देश के कई क्षेत्रों में इस परंपरा का अनिवार्य रूप से निर्वाह किया जाता है।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
06 मार्च 2012
होली में क्यों डाले जाते हैं गेहूं और चावल?
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