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09 मार्च 2012

जी हां सच में, यहां स्वयं सूर्यदेव करते हैं शिवलिंग के दर्शन


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कोटा.738वीं ईस्वी में निर्मित कंसुआ धाम मंदिर के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्त्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है स्वयं सूर्यदेव यहां स्थित शिवलिंग के दर्शन करते हैं। मुख्य मंदिर के दो दरवाजों के बाद यहां गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है।

बावजूद इसके आज भी सूर्य की पहली किरण शिवलिंग पर गिरती है। यही नहीं गर्भगृह में तीन स्थान ऐसे हैं जहां से इसमें हवा पहुंचती है। हवा कहां से आती है, इसके बारे में किसी को पता नहीं है।

कंसुआ धाम सिर्फ इसलिए ही ख्यात नहीं कि यहां महर्षि कण्व का आश्रम है। इतिहास यहां की कड़ियां दुष्यंत-शकुंतला की प्रणय कथा और प्रतापी सम्राट भरत की जन्मस्थली के रूप में भी जोड़ता है। हालांकि जैसी दुर्दशा इस धरोहर की हुई कमोबेश वैसे ही हाल यहां के इतिहास को लेकर भी है। न तो भारतीय पुरातत्व विभाग ने कभी इस बारे में पहल की और न ही किसी शहरवासी ने।

विभाग ने इसे अपने अधिकार में ले लिया लेकिन, इसके विकास के लिए कोई कार्य नहीं किया। जिस स्थान पर उनका कार्यालय है, वहां जरूर उन्होंने पार्क विकसित किया हुआ है। लेकिन, जिस स्थान पर शिवमंदिर व कुंड तथा एक हजार शिवलिंग वाला स्तंभ है, उसकी देखभाल व संरक्षण के लिए कुछ नहीं किया। वे आज भी इंतजार कर रहे हैं कोई उनकी सुध लेने वाला आएगा।

शिवमंदिर में पहली सूर्य की किरण

शिवमंदिर में करीब 20 फीट अंदर गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग का महत्व यह है कि सूर्य की पहली किरण सीधे उन पर गिरती है। जबकि मंदिर में प्रवेश करने के बाद बीच में नंदी स्थापित है। उससे भी दस फीट की दूरी पर गर्भगृह में शिवलिंग है। जहां बैठकर देखने पर उगते सूर्य की किरण दिखाई देती है। पुजारी का कहना है कि बीच में कुछ पेड़ उगने से इसमें बाधा आ रही है लेकिन, फिर भी परंपरा बनी हुई है।

कुटिल लिपि का शिलालेख

मंदिर में संस्कृत भाषा एवं कुटिल लिपि में लिखे 795 विक्रमी के उत्कीर्ण शिलालेख के अनुसार शस्त्र-शास्त्र में पारंगत राज शिवगण की आज्ञा पर उनके अधिकारी गोमिक के पुत्र धर्मशील एवं सदाचरणी प्रियवंद कायस्थ ने मंदिर निर्माण बनवाकर यह लेख स्थापित कराया था। लेख के अनुसार कृष्ण का पुत्र णाणक मंदिर का प्रमुख शिल्पी था। भट्ट सुरभि के पुत्र देवट ने इस लेख के मधुर श्लोक लिखे। द्वारशिव के पुत्र शिवनाग ने लेख को उत्कीर्ण किया था। कुटिल लिपि में लिखे ये शिलालेख सारे देश में प्रसिद्ध हैं। महाकवि जयशंकर प्रसाद ने इस लेख का अपने नाटक चंद्रगुप्त की भूमिका में उल्लेख किया है। इसमें दो स्थानों पर इस जगह को कण्वाश्रम बताया गया है।

कहां से आती है हवा, पता नहीं

मंदिर के गर्भगृह में तीन स्थान ऐसे बने हुए हैं जहां से उसमें हवा प्रवेश करती है और मंदिर के तापमान को सामान्य बनाए रखती है। इसमें हवा कहां से आती है किसी को पता नहीं है। इन स्थान पर जब अगरबत्ती लगाई जाती है तो उसका धुआं या तो इस स्थान के अंदर की ओर जाता है या फिर वह हवा के कारण मंडराता है। यहां के पुजारी भी यह पता नहीं कर पाए कि यह हवा कहां से आती है।

ऑफिस के पास हरियाली मंदिर के पास उजाड़

कंसुआ धाम का एक इलाका ऐसा है जिसमें हरियाली छाई हुई है। यहां स्थित भैंरूजी अपना अलग ही महत्व रखते हैं, जबकि इसके सामने वाला हिस्सा उजाड़ बना हुआ है। इसके एक हिस्से पर लोगों ने अतिक्रमण किया हुआ है। गंदा नाला बह रहा है। एक हजार शिवलिंग वाला स्तंभ देखरेख के अभाव में उजाड़ बना हुआ है।

...और इस समाधि पर ध्यान में खो जाते हैं

मंदिर के सामने की ओर एक समाधि बनी हुई है। जिसमें छतरी के साथ ही शिवलिंग कुंड के अंदर स्थापित हैं। यहां के बारे में मान्यता है कि जब कोई भी व्यक्ति यहां बैठकर ध्यान लगाता है तो वह दीन दुनिया से बेखबर हो जाता है। इस स्थान का भी यहां काफी महत्व बताया जाता है। हालांकि यहां 10 से 15 के बीच समाधियां बनी हुई हैं। जिनके ऊपर शिवलिंग बने हुए हैं।

...और गुप्त शिवलिंग पर लगा दी जाली

इस बीच प्रशासन तथा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने यहां कमरे में स्थित गुप्त शिवलिंग के चारों ओर लोहे की जाली लगा दी है। अब 11 व 12 मार्च को होने वाले दर्शनों के दौरान श्रद्धालु जाली में से ही गुप्त शिवलिंग के दर्शन कर सकेंगे। विभाग की ओर से शुक्रवार को भी यहां सफाई कार्य जारी था।

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