इंदौर। सोमवार को जारी योजना आयोग के आंकड़ों के अनुसार देश में गरीबी घट गई है। पहले जिस व्यक्ति का 32 रुपए प्रतिदिन खर्च हो रहा था, अब मात्र 28 रुपए में उसका काम हो रहा है। मगर हकीकत यह है कि न तो पहले 32 रुपए में जीवन चल पा रहा था और न ही अब 28 रुपए में चल पा रहा है। महंगाई मुंह फाड़ रही है और गरीबी आंकड़ों में उलझी पड़ी है। इन दोनों के बीच गरीब कराह रहा है। आइए जानें क्या है सरकार का दावा और क्या है जीवन की हकीकत..
गरीबी की नई परिभाषा
ग्रामीण इलाकों में 672.80 रु. मासिक (यानी 22.42 रु. रोज) जबकि शहरी इलाकों में 859.60 मासिक (यानी 28.65) से कम आय वाला व्यक्ति ही गरीब है। आंकड़ा प्रति व्यक्ति के हिसाब से है।
सितंबर 2011 में कहा था
योजना आयोग ने गरीबी रेखा को परिभाषित करते हुए कहा था कि शहरों में जो व्यक्तिहर महीने 965 रु. मासिक (यानी 32.16 रु. रोज) व गांवों में 781 रु. मासिक (यानी 26.03 रु. रोज) खर्च करता है वो गरीब नहीं माना जाएगा।
सरकार का हिसाब (रु .में)
दूध--2.33
दाल--1.02
चावल-गेहूं--5.50
सब्जी--1.95
फल--0.44
चीनी--0.70
मसाले--0.78
तेल--1.55
ईंधन--3.74
मकान किराया--1.65
स्वास्थ्य--1.32
शिक्षा--0.99
कपड़े--2.04
जूते-चप्पल--0.32
साजो सिंगार--0.96
अन्य निजी खर्च--6.70
कुल खर्च--32.00 रु.
हकीकत का जवाब
वस्तु-------मात्रा-------वर्तमान भाव-------लागत (रु .में)
गेहूं-------250 ग्राम-----18 रु.किलो--------4.50
दाल-------50 ग्राम------78 रु. किलो-------3.90
चावल------100 ग्राम-----30 रु. किलो-------3.00
तेल-------20 मिली.-------78 रु. लीटर-------1.56
शकर-------30 ग्राम-------32 रु. किलो-------0.96
दूध-------200 मिली.-------32 रु. लीटर-------6.40
फल-केला----1 नग-------24 रु. दर्जन-------2.00
मिश्रित सब्जी--150 ग्राम-------30 रु. किलो-------4.50
ईंधन-------------------455 रु. सिलेंडर-------3.80
यानी खाने का कुल खर्च-------32.32
गरीबी मापने का पैमाना
योजना आयोग ने दिसंबर 2005 में तेंडुलकर समिति का गठन किया था। समिति के सुझाए पैमानों के आधार पर आयोग किसी परिवार की गरीबी का आकलन करता है। पैमाने में स्वास्थ्य, शिक्षा पर किए जा रहे खर्च और भोजन में कैलोरी की गणना भी की जाती है।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
20 मार्च 2012
सरकार! जरा आंखें खोलिए और बताइए कहां घटी गरीबी!
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