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04 मार्च 2012

जानें, क्यों मनाई जाती है होली, क्या है इसका महत्व


हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष के अंतिम माह फाल्गुन की पूर्णिमा को होली का त्योहार मनाया जाता है। यह हिन्दू धर्म के सबसे प्राचीन उत्सवों में से प्रमुख उत्सव है। इस पर्व का महत्व धर्म ग्रंथों में भी मिलता है। इसलिए इसे वैदिक पर्व भी कहते हैं। इस बार होलिका दहन 7 मार्च, बुधवार को किया जाएगा तथा धुरेड़ी 8 मार्च, गुरुवार को खेली जाएगी।
इस पर्व में होलाका नामक अन्न, जिसका संस्कृत भाषा में अर्थ है खेत का आधा कच्चा, आधा पक्का अन्न या भुना हुआ अन्न, से हवन कर प्रसाद लेने की परंपरा थी। संभवत: इसलिए इसका नाम होलिकोत्सव हुआ। श्रीमद्भागवत में भी नई फसल का एक भाग देवताओं को चढ़ाने का महत्व बताया गया है। फाल्गुन माह में आने के कारण इसे फाल्गुनोत्सव भी कहा जाता है।
पुराणों में भी इस पर्व की परंपरा आरंभ होने की कथाएं है। जिनमें होलिका दहन की कथा सबसे लोकप्रिय है। धर्मावलंबी आज भी इस कथा को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में याद करते हैं। प्राकृतिक दृष्टि से यह दिन मौसम में बदलाव का होता है। इस दिन से बसंत ऋतु का आंरभ होता है, जिसे प्रेम और नवचेतना की ऋतु माना गया है।
होलिकोत्सव का आरंभ प्रमुख रुप से होलिका दहन से शुरु होता है। अगले दिन अर्थात् चैत्र माह कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को धुरेड़ी मनाई जाती है। भारत के कईं भागों में उत्सव का यह सिलसिला चैत्र कृष्ण पंचमी को रंगपंचमी तक चलता है। भारतीय समाज में होली एकता का पर्व है। जिसमें सभी नर-नारी, बच्चे, बुजुर्ग जाति और वर्ण के भेद को भुलाकर इस पर्व को बड़े उत्साह और उल्लास से मनाते हैं।

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