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01 मार्च 2012

तुम्हारा सूरज तुम्हे मुबारक


तेरे सूरज को
अपनी तपिश
अपने उजाले पर
बहुत बहुत गुमान था ॥
में सोचता था
कितनी बदगुमानी है
तेरे सूरज को
में कहता था
कितना गुरुर है तेरे सूरज को
लेकिन
तुम ने
मेरे कहने को कहां माना
देख लो
सिर्फ और सिर्फ तुम्हे
तुम्हारे इस सूरज की सच्चाई बताने के लियें
मुझे अपने चाँद को
मंज़र पर लाना पढ़ा है
देख लो
हाँ तुम गोर से देख लो
मेरे इस चाँद की एक लकीर ने
तुम्हारे तपा देने वाले
रौशनी देने का अभिमान करने वाले
सूरज को केसे
छुप जाने को मजबूर कर दिया है
इसी लियें कहता हूँ
तुम्हारा सूरज तुम्हे मुबारक
मुझे तो मेरा चाँद मिल गया
बस जिंदगी मिल गयी समझो ..अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 टिप्पणी:

  1. इसी लियें कहता हूँ
    तुम्हारा सूरज तुम्हे मुबारक
    मुझे तो मेरा चाँद मिल गया
    बस जिंदगी मिल गयी समझो...जिन्दगी के यथार्थ को बताती सार्थक अभिवयक्ति....

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