आपका-अख्तर खान

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09 मार्च 2012

दोस्तों हंसना मत प्लीज़ मेरी शादी के इक्कीसवें काले दिवस पर ..........



दोस्तों आज मेरी जिंदगी का इक्कीसवां काला दिवस हे आज ही के दिन ही मुझे एक खतरनाक महिला के साथ बेड़ियों में जकड़ा गया था... हंसी हंसी में में खुद उम्र केद की सजा मंज़ूर कर रहा हूँ.... यह में सपने में भी नहीं सोच पा रहा था... मीठा लड्डू खाने के चक्कर में में धोखे में आ गया ...
१० मार्च १९९१ का वोह काला दिन ...मुझे मोत के मुंह में धकेलने , मेरी जिंदगी उम्र भर के लियें केद करने के लियें लोग एकत्रित हुए.. नाचे गाये.. मुझे घोड़ी पर बिठाया गया ..और फिर हमें राजस्थान के ही नवाबों की नगरी टोंक ले जाया गया वहां एक रिजवाना नाम की खतरनाक एब्दार लडकी को मेरा इन्तिज़ार था.. जी हाँ इस महिला का नाम रिजवाना स्कुल का हे ...लेकिन अकिकी नाम रईसुन्निसा रखा गया था ... निकाह इसी नाम से हुआ.... मेरा भी निकाह अकिकी नाम अजहर से हुआ... अब मेरा नाम तो अख्तर खान अकेला और जो मेरे साथ जेलर बना कर उम्र केद की सजा भुगताने के लियें भेजी गयी... उसका नाम रिजवाना ....हमारे पास निकाहनामा अजहर और रईसुन्निसा का .....अब बताओ हम क्या करें .....खेर रस्मों के नाम पर मुझे उल्लू बनाया गया ..सालियों और सलेजों ने बेवकूफ बनाकर ....बीवी मुट्ठी खोल में तेरा गुलाम कहलवाया और बस ...तबसे आज तक में भुगत रहा हूँ . ....
मेरी यह जो जेलर हे कहने को तो टोंक की साहबजादी हैं .......... माशा अल्लाह तीन भाई और चार बहनें और हें ..सभी खतरनाक हे ...मेरी इस बर्बादी के बाद मेरे दो छोटे साले कमर और फर्रुख कुंवारे थे .....सो मेने भी उन्हें बर्बाद करने की ठानी ...जयपुर के हमारे साडू इकबाल खान साहब और सलेज रुखसाना ,टोंक के साडू बड़े दादा और रिसर्च ऑफिसर सलेज नादिरा ने मिल कर षड्यंत्र किया और साले कमर को एक खतरनाक सलेज वफरा से फंसा दिया..... बेचारे एक हंसते खेलते साले की बोलती बंद हे... सलेज जादूगरनी हे हजारा पढती हें सो उन्होंने हमारे साले पर पढ़ कर फूंका ....अब वोह हुक्म के गुलाम हे ....मुझे लगा मेरे आंसू पोंछने वालों में अब एक और शामिल हो गये हें.... फिर दुसरा छोटा साला फर्रुख थे ...बस उनके खिलाफ भी षड्यंत्र रचा और उन्हें मिस यूनिवर्स तबस्सुम से उलझा दिया ...अब इस बेचारे की तो क्या कहूँ .... आप खुद ही समझ जाओ मेरे पास कहने के लियें अलफ़ाज़ नहीं हे बढ़े साले हें जिन्हें भय्या कहते हें..... बाहर पुरे टोंक में शेर समझे जाते हें... जिला वक्फ कमेटी के चेयरमेन हैं लेकिन घर में हमारी सबसे बढ़ी सलेज अफशां के सामने उनकी घिग्घी बन जाती हे... कुल मिला कर हम सभी साडू और साले बहनोई एक ही दर्द के मारे हें...हमारे एक और साडू जनाब हाजी मियाँ को हमारी बढ़ी साली शाहिदा ने बीमार कर दिया जो अभी माशा अल्लाह दिल का इलाज करा कर ठीक हो गये है अल्लाह उन्हें श्त्यब रखे और उम्र दराज़ करे .......... हमारे सास ससुर बाल ठाकरे और मुल्लानी जी हमारे इस हाल पर हमारा मजाक उड्हाते रहते हें हम खामोश गर्दन झुकाए बेठे रहते हें ।

इस खतरनाक जेलर के बारे में में आपको बताऊं... यह कोटा में उर्दू की लेक्चरार हें और बच्चों को पढाती हे ..इसलियें वही लहजा ...वही डांटने का अंदाज़ ...घर में चलता हे... आप अंदाजा लगायें ...में किन हालातों में सांस ले रहा होउंगा... मेरी बोलती बंद हे... इसी उठा पटक में मेरे इस जेलर ने मूल के साथ तीन ब्याज दिए ... पहला लडका शाहरुख खान जो अमिटी नोइडा से बी टेक कम्प्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग कर रहा है .., एक बच्ची जवेरिया टेंथ में हे जबकि एक प्यारी बिटिया सदफ अख्तर जो अभी सेकंड में पढ़ रही हे .
जेलर जिसके हंटर से मेरी बोलती बंद हे उसकी जुबां कभी अगर चलती हे तो केंची से भी खतरनाक होती हे ...मोहल्ले और परिवारों में उसने जादू करके खुद को अच्छा साबित कर रखा हे .... मेरे पापा हाजी असगर अली खान को भी उसने वक्त पर खाना.. चाय नाश्ता... दे कर पटा रखा हे... हमारी मम्मी रशीदा खानम हे बस इस जेलर की केंची के आगे उनकी तो बोलती बंद हे... एक भाई परवेज़ खान जो सुधा अस्पताल में मेनेजर हे उसकी बीवी रूबी भी टोंक की हे ...इसलियें इनकी यूनियन जिंदाबाद हो रही हे.... और दोस्तों में अकेला पढ़ जाने से अख्तर खान अकेला हो गया हूँ ....और इसीलियें यह जेलर मुझ पर हावी हे... अब मेरे लियें तो खुदा खेर करे... हे ना मेरी दर्द भरी कहानी जो आज काला दिवस के दिन नई हो गयी हे । दोस्तों यह है मेरी दर्द भरी कहानी जो पिछले इक्कीस सालों से बदस्तूर चली आ रही है... और मेरी खुदा से यही इल्तिजा है के मुझे हर बार यही खतरनाक जेलर मिले ..यही जेलर हर पल हर क्षण मेरे साथ रहे ..मेरे बच्चे आप लोगों की दुआ से उनके सपने साकार करें ..मेरे माँ बाप .सास ससुर सह्त्याब रहे .......... मेरी जेलर ज़िंदा बाद जिसने मुझे खुली जेल के केदी की तरह से जेल में रखा है जिसे सुबह जेल से छोड़ दिया जाता है और उसे हुकम होता है के रात को उसे वापस जेल में ही केद खाने में आना है तो भाई यह उम्र केद की सज़ा में भुगत रहा हूँ और इस खुबसूरत मजेदार सजा से माफ़ी का दिल ही नहीं चाहता है मन करता है के जेलर इस केदी के साथ हमेशा रहे ........................... अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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