आपका-अख्तर खान

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01 मार्च 2012

तुम्हारी हाँ का इन्तिज़ार है


मेरे जुर्म की
तुम
चाहो जो
मुझे सजा दे दो ॥
लो
में खुद ही
मेरे जुर्म की
सजा पा रही हूँ ॥
बस इल्तिजा है इतनी
यूँ न रूठों मुझ से
यूँ न पल में बन जाओ
पराया मुझ से
बस सुन लो मेरी पुकार
तुम मेरे थे
मेरे हो
मेरे ही रहोगे
फिर देख लो
मेरा मुर्गा आसन्न
शायद तुम्हे पिघला सके
देख लो ..सोच लो
मुझे बस एक बार फिर
हाँ एक बार फिर
तुम्हारी हाँ का इन्तिज़ार है ............ अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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