चैत्र मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को वारुणी पर्व मनाया जाता है। इस दिन तीर्थ स्नानों पर स्नान-दान का विशेष महत्व धर्म ग्रंथों में बताया गया है। इस बार यह पर्व 20 मार्च, मंगलवार को है। यह व्रत तीन प्रकार का होता है।
पहला चैत्र कृष्ण त्रयोदशी को वारुण नक्षत्र (शतभिषा) हो तो वारुणी, दूसरा उसी दिन शतभिषा और शनिवार हो तो महावारुणी और तीसरा यदि इस तिथि को शतभिषा नक्षत्र, शनिवार और शुभ योग हो तो महामहावारुणी पर्व होता है। इस योग में गंगा आदि तीर्थ स्थानों में स्नान, दान और उपवास करने से करोड़ों सूर्य ग्रहणों के समान फल प्राप्त होता है।
चैत्रासिते वारुणऋक्षयुक्ता त्रयोदशी सूर्यसुतस्य वारे।
योगे शुभे सा महती महत्या गंगाजलेर्कग्रहकोटितुल्या।।
(त्रिस्थलीसेतु)
इस तिथि पर काशी, प्रयाग, हरिद्वार आदि तीर्थों में स्नान-दान का विशेष महत्व है।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
19 मार्च 2012
वारुणी पर्व 20 को, करें तीर्थ स्नान
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