बांका. मेडिकल साइंस में भले ही आज दुनिया आगे निकल गयी हो, भारत का डंका बज रहा हो लेकिन बिहार के बौंसी प्रखंड के आदिवासियों में अंधविश्वास की जड़ें आज भी गहरी हैं।
पड़ोसी राज्य झारखंड की सीमा पर स्थित सरुआ पंचायत अन्तर्गत भलजोर गांव में दो राज्यों के लगने वाले आदिवासी मेले में बीमारियों को आग के अंगारे पर दौड़ा कर ठीक करने की परंपरा है। बीमारी ठीक हो या नहीं, लेकिन हैरानी की बात है कि आग के अंगारे पर दौड़ने वाले को कुछ भी नहीं होता। इस मेले में बढ़ी संख्या में युवक, प्रौढ़ व महिलाएं भाग लेतीं हैं।क्या है परंपरा ?
आदिवासी गुरुओं में एक शिवलाल हांसदा के मुतबिक यह परंपरा उनके पुरखों से चली आ रही है। उन्होंने बताया कि मैदान में दो फीट गड्डा खोद कर उसमें कोयले का दहकता अंगार तैयार किया जाता है। इसके बाद दो फीट लकड़ी के टुकड़े में बाहर निकली हुई नुकीली कील पर से चल कर अंगारों से गुजरना पड़ता है। जो लोग इसे सहजता से पार कर लेते हैं उन्हें कोई बीमारी नहीं होती। इस अंगारे पर गुजरने वालों को कम से कम तीन दिनों तक उपवास पर रहना पड़ता है।
ठीक होती है ये बीमारी
आदिवासी गुरु रसीक लाल हांसदा ने बताया कि खसरा, पीलिया, दमा, खांसी, मिर्गी, लकवा और पेट संबंधी के अलावे बुरी नजरों से भी यह दूर रखता है। उनके मुताबिक साल में कम से कम एक बार अंगारे पर नियमपूर्वक दौड़ने से ही इन बीमारियों को काबू में रखा जा सकता है।
सीएस ने कहा
बांका के सिविल सार्जन डॉ. एनके विद्यार्थी ने इसे पूरी तरह से भ्रामक बताते हुए लोगों को ऐसे अंधविश्वास से बचने की सलाह दी और कहा कि ऐसा नहीं करने पर बीमारी और भी गंभीर हो जाती है। उन्होंने खस तौर पर आदिवासियों से अपील करते हुए कहा कि कोई भी बीमारी हो उसे तुरंत अपने नजदीकी चिकित्सकों को जरुर दिखाये।
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